गैर जमानती धारा 437 सी आर पी सी
प्रशन : वकील साहब गैर जमानती धारा 437 सी आर पी सी (Non-Bailable Offence) क्या होती है इसमें जमानत कैसे ले तथा शिकायतकर्ता कैसे बैल का विरोध करे |
updated on 11.04.2019
उत्तर :- गैर जमानती अपराध (Non-Bailable Offence) क्या है:-
वे गम्भीर प्रकर्ति के अपराध जो की जमानतीय नही है तथा जिनमे सजा 3 वर्ष व इससे अधिक है वे अपराध गैर जमानती धारा के अपराध समझे जाते है सामान्यतया, ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी के लिए गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड सहित की धारा 437 के अंतर्गत मिलती है
वैसे भारतीय दंड प्रकिर्या सहिता में गैर जमानती अपराध की कोई परिभाषा नहीं दी गयी है। अतः हम यह कह सकते है कि ऐसा अपराध जो –(क) जमानतीय नहीं हैं, एवं (ख) जिसे प्रथम अनुसूची में ग़ैर-ज़मानती अपराध के रूप में अंकित किया गया है, वे ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं।
गैर जमानती धारा 437 सी आर पी सी क्या है :-
इस धारा का सम्पूर्ण हिंदी रूपान्तर स्पष्टीकरण के साथ दिया गया है :-
धारा 437
- अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी –
(1) जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजमानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह सन्देह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरूद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है, या, लाया जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किन्तु –
स्पष्टीकरण :- किसी आरोपी पर ये संधेय है या, फिर उसने कोई गैर जमानती अपराध किया है जिसकी उसके उपर अफ. आई. आर. लिखी जा चुकी है तथा उस आरोपी को पुलिस ने वारंट या फिर बिना वारंट दिए गिरफ्तार किया है और गिरफ्तार करने के बाद उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है जो की सेसन कोर्ट या हाई कोर्ट नही है तो उसे बैल पर उस कोर्ट द्वारा छोड़ा जा सकता है लेकिन-
(i) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं | कि, ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है, तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा,
स्पष्टीकरण :- अगर आरोपी ने कोई ऐसा अपराध किया है, जिसकी सजा मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय है तो, ऐसे व्यक्ति को बैल नही दी जाएगी | दुसरे शब्दों में कहे तो वे अपराध जो की उस मजिस्ट्रेट की कोर्ट से बड़ी कोर्ट, सेशन कोर्ट में चलेंगे तथा वे गम्भीर प्रकार के अपराध है \ उन में मजिस्ट्रेट कोर्ट बैल नही देगी |
(ii) यदि ऐसा अपराध, जो संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति, मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह किसी [तीन वर्ष या अधिक परन्तु सात वर्ष से अनधिक कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराध के लिए] दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा |
स्पष्टीकरण :- अगर, वह गम्भीर प्रक्रति का अपराध है, और वह व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषी सिद्ध किया गया हो, या, फिर ऐसे अपराध से दंडनीय रहा हो, जिस अपराध में [तीन वर्ष से ज्यादा के कारावास जो की सात वर्ष से कम नही हो] तथा ऐसा उसके साथ दो बार या इससे ज्यादा दोषी सिद्ध किया गया हो वह व्यक्ति बैल का अधिकारी नही होगा |
परन्तु न्यायायल यह निदेश दे सकेगा कि खण्ड (i) या खण्ड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति सोलह वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है:
स्पष्टीकरण :- अगर कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम उम्र का है या, फिर स्त्री है या, बीमार है या, दुर्बल/ असक्त / लाचार व्यक्ति है | उसे कोर्ट उसे खण्ड (i) और (ii) में दिए गये नियमो के होने के बावजूद, आरोपी को बैल दे सकती है |
परन्तु यह और कि न्यायालय यह भी निदेश दे सकेगा कि खंड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है:
स्पष्टीकरण :- ये उप धारा कहती है की कोर्ट को अगर खंड (ii) के अनुसार, किसी कारण से ये लगे की आरोपी को बैल दी जा सकती है तो वो बैल दे सकती है |
परन्तु, यह और भी, कि, केवल यह बात कि अभियुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए हो सकती है, जमानत मंजूर करने से इंकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वह ऐसे निदेशों का, जो न्यायालय द्वारा दिए जाए, अनुपालन करेगा।
स्पष्टीकरण :- पुलिस, अगर ये कहे की उन्हें अभी आरोपी की शिनाखत शिकायतकर्ता से करवानी है इसलिए, इसलिए, अभी आरोपी को बैल नही दी जाये, तो ये आधार न्यायसंगत नही होगा | अगर आरोपी कोर्ट में बैल बांड सहित ये वचन दे की वो कोर्ट द्वारा दिए गये सभी नियमो व वचनों का पालन करेगा तो कोर्ट उसको बैल दे सकती है |
[परन्तु, यह और भी कि उस व्यक्ति को, यदि उसके द्वारा ऐसा अपराध आरोपित है जिसमें मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा से दण्डनीय है तो न्यायालय द्वारा लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर दिए बिना इस उपधारा के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा]
स्पष्टीकरण :- अगर आरोपी का अपराध मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा से दण्डनीय है तो कोर्ट उसे बैल नही देगा | ऐसे में अगर सरकारी वकील साहब भी अगर विरोध के लिए, किसी कारण उपस्तिथ नही है, तो भी, इस आधार पर बैल नही मिलेगी |
(2) यदि, ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होता है कि, यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपरध किया है किंतु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त धारा 446 (क) के उपबँधों के अधीन रहते हुए और ऐसी जांच लम्बित रहने तक जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभूओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर, छोड़ दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण :- अगर, पुलिस या कोर्ट को ये विश्वास हो की आरोपी ने कोई गैर जमानती अपराध नही किया है, लेकिन कोर्ट में सच्चाई सामने लाने के लिए केस का चलना जरूरी हो तो, पुलिस और कोर्ट आरोपी को बैल दे सकते है | ऐसे में आरोपी को धारा 446A के अनुसार बैल बांड देना होता है जिसमे जमानती भी होता है | इसमे उसे बैल के नियमो या फिर कोर्ट के द्वारा कोई नये नियम का पालन करना होता है | { ऐसे में पुलिस की पावर है की वो नॉन बैलेबल केस में भी आरोपी को गिरफ्तार नही कर के चार्ज शीट फ़ाइल् कर सकती है, लेकिन ऐसा कम ही होता है मैंने ऐसा वकील साहबो के पर्सनल केस में ही देखा है }
(3) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दण्डनीय कोई अपराध या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय शर्तें अधिरोपित करेगा, –
(क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंध-पत्र की शर्तों के अनुसार उपस्थित होगा,
(ख) कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, वैसा अपराध नहीं करेगा, और
(ग) कि व्यक्ति, उस मामले में तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी को, मामले के तथ्य प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, उत्प्रेरित धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं छेड़-छाड़ सकेगा।और न्यायहित में ऐसी अन्य शर्तें भी, जैसी वह ठीक समझे, अधिरोपित कर सकेगा।
स्पष्टीकरण :- इस उप धारा (1) में दिए गए उपबंधो व कोई भी गंभीर अपराध वो चाहे 7 वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडित क्यों ना हो | या फिर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, 16 या 17 के अधीन हो, तो भी, ऐसे में कोर्ट, कोई भी अपनी शर्त लगा कर आरोपी को बैल दे सकता है
- इसमें आरोपी बैल बांड की सारी शर्तो का पालन करेगा
- जो आरोप, आरोपी पर केस में लगा है वह ऐसा कार्य नही करेगा न ही ऐसा ही कार्य दुबारा कभी करेगा
- आरोपी पुलिस या कोर्ट को कोई परलोभन नही देगा, न ही स्वय या किसी और के द्वारा धमकी देगा व किसी भी सबूत से छेड़ छाड़ करेगा
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा।
स्पष्टीकरण :- जज साहब आरोपी को बैल क्यों दे रहे है इसके कारणों को अपने आर्डर में लिखेंगे
(5) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
स्पष्टीकरण :- अगर कोर्ट को लगे की उसने जिस आरोपी को उसने बैल पर छोड़ा है उसे किसी कारण वश अब बैल देनी सही नही है तो कोर्ट उस आरोपी को गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है
(6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता है तो, यदि ऐसा व्यक्ति उक्त सम्पूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा न दे वह मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण :- अगर किसी गैर जमानती अपराध में आरोपी जेल में है और चार्ज लगने के बाद केस गवाही में है और अगले 60 दिन तक कोई गवाही नही हुई है तो इस आधार पर आरोपी को बैल मिल सकती है |
(7) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह अभियुक्त को, सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बन्धपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।
स्पष्टीकरण :- केस अंतिम निर्णय के समय या फिर इससे पहले अगर कोर्ट को लगे की आरोपी को बैल दी जानी चाहिए, तो, कोर्ट आरोपी को बिना जमानती के भी बैल पर छोड़ सकता है |
कोर्ट से बैल या जमानत कैसे ले :-
गैर जमानती धारा 437 सी आर पी सी में जमानत कोर्ट लेना क्रिमिनल प्रक्टिस में सबसे मुश्किल काम होता है | सबसे पहले एक अप्लिकेशन लिखे जिसमे की सबसे पहले ये लिखा हो की आरोपी कितने समय से जेल में है तथा ये आरोपी की पहली अप्लिकेशन है तथा दूसरी होने की स्तिथि में दूसरी अप्लिकेशन लिखे तथा लिम्न्लिखित बातो का भी वर्णन करे |
- सबसे पहले अपनी एप्लीकेशन में ये जरुर लिखे की शिकायत कर्ता ने आपके खिलाफ ये झूठी अफ. आई. आर. क्यों करवाई इसका कारण जरुर बताये क्योकी कोर्ट आपको दोषी समझती है कोर्ट को ये बताना बहुत ही जरूरी होता है की ये आप के खिलाफ ये क्यों किया गया |ताकि कोर्ट का सबसे पहले ये विचार सही हो सके की नही है अफ. आई. आर. पूरी तरह से सच्ची नही है |
- दूसरा आप के खिलाफ जो अफ. आई. आर. हुई है उसमे से कमिया निकाले कि किस तरह से वह अफ. आई. आर. झूटी है जैसे की कोई आप पर सडक दुर्घटना का आरोप लगाता है तो आप ये देखे की आप की कार अगर आगे नही टकराई है तो लाजमी है की दुसरे ने ही आकर आप को टक्कर मारी है | अगर आपने टक्कर मारी होती तो आपकी गाड़ी का अगला हिस्सा उससे टकराता दूसरा जैसे कोई आप पर मारपिटाई का आरोप लगाये तो अपने जखम भी मेडिकल रिपोर्ट के साथ कोर्ट में दिखाए की अगर आपने उसे अपने साथियों के साथ मिल कर बुरी तरह पीटा था तो आपको चोट भी तो चोट लगी है वो कैसे लग सकती है इसका मतलब पहले लड़ाई उसने ही आप को पीट कर शुरू की थी | इसके लिए आप सी सी टी वी कैमरे की भी कोई रिकोर्डिंग होतो उसका सहारा ले सकते हो आप अपनी लोकेशन मोबाइल द्वारा भी इसका सहारा ले सकते हो
- गिरफ्तारी होने बाद जांच एजेंसी को छोटे अपराधो में 60 दिनों में तथा जघन्य अपराधो में 90 दिन में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी होती है। इस दौरान चार्जशीट दाखिल न किए जाने पर सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत आरोपी को जमानत मिल जाती है। वहीं 10 साल से कम सजा के मामले में अगर गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल न किया जाए तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है
- एफआईआर दर्ज होने के बाद आमतौर पर गंभीर अपराध में जमानत नहीं मिलती। यह दलील दी जाती है कि मामले की छानबीन चल रही है और आरोपी से पूछताछ की जा सकती है। एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद यह तय हो जाता है कि अब आरोपी से पूछताछ नहीं होनी है और जांच एजेंसी गवाहों के बयान दर्ज कर चुकी होती है, तब जमानत के लिए चार्जशीट दाखिल किए जाने को आधार बनाया जाता है। लेकिन अगर जांच एजेंसी को लगता है कि आरोपी गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं तो उस मौके पर भी जमानत का विरोध होता है क्योंकि ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज होने होते हैं
अगर चार्जशीट दाखिल कर दी गई हो तो जमानत केस की मेरिट पर ही तय होती है। केस की किस स्टेज पर जमानत दी दिया जाए, इसके लिए कोई व्याख्या नहीं है। लेकिन आमतौर पर तीन साल तक कैद की सजा के प्रावधान वाले मामले में मैजिस्ट्रेट की अदालत से जमानत मिल जाती है
- अगर आप पर पहले कोई अपराधिक रिकोर्ड नही है तो वो भी बैल लेने कारण हो सकता है आप बैल के लिए अपनी टैक्स रिटन या अपने पर आश्रित परिवार के लोगो या अपनी कम उम्र का सहारा ले कर भी बैल ले सकते है
- गैर जमानतीधारा 437 सी आर पी सी में बैल या जमानत लेने में सबसे बड़ी बाधा पुलिस यानि (आई. ओ.) व सरकारी वकील होते है अगर वे आपकी बैल का ज्यादा विरोध नही करे तो भी कोर्ट का मन आपको बैल देने का मन बन सकता है अब इन लोगो को विरोध करने से कैसे रोके ये मुझे आप लोगो को समझाने की जरूरत नही है
- कोर्ट में बैठे जज साहब भी इन्सान ही होते है और हर जज साहब का अपराधी को देखने का नजरिया अलग होता है अगर कोई जज साहब अपराधियों को बैल देने में कुछ ज्यादा रियायत देते है तो ऐसे जज साहब का समय आने पर ही बैल लगाये अन्यथा कुछ दिन ठहर कर ले | क्योकि जमानत न मिलने से तो अच्छा है कुछ दिन ठहर कर ही जमानत ले ली जाये |
- जैसे की उपर बताया की जज साहब भी इन्शान होते है उसी प्रकार से बैल लेने के लिए हमेशा जज साहब का मुड देखे की कोर्ट बैल के बारे में क्या सोच रही है तथा किस प्रकार से किस बात या पॉइंट को ज्यादा पसंद करती है तो उसी प्रकार से ही आप जज साहब को समझाये मेरेकहने का मतलब ये है की बैल या जमानत मिलना या नही मिलना ये 80 प्रतिशत तक आपके वकील साहब पर निर्भर करता है है की वे किस प्रकार से कोर्ट को प्रभावित कर पाते है और बैल ले पाते है इसलिए हमेशा अच्छे व समझदार वकील साहब को ही बैल का काम सोपे |
- बैल देने का आखिरी फैसला अदालत का ही होता है ऐसे में मामला अगर गंभीर हो और गवाहों को प्रभावित किए जाने का अंदेशा हो तो चार्ज फ्रेम होने के बाद भी जमानत नहीं मिलती। ट्रायल के दौरान अहम गवाहों के बयान अगर आरोपी के खिलाफ हों तो भी आरोपी को जमानत नहीं मिलती। मसलन रेप केस में पीड़िता अगर ट्रायल के दौरान मुकर जाए तो आरोपी को जमानत मिल सकती है | लेकिन अगर वह आरोपी के खिलाफ बयान दे दे | तो जमानत मिलने की संभावना खत्म हो जाती है। कमोबेश यही स्थिति दूसरे मामलों में भी होती है। गैर जमानती अपराध में किसे जमानत दी जाए और किसे नहीं, यह अदालत तय करता है और इसको तय करने का कोई स्टिक कानून नही है ये पूरी तरह से जज साहब के विवेक पर ही निर्भर करता है |
शिकायतकर्ता बेल का विरोध कैसे करे :-
कई बार हमारे सामने ऐसी स्तिथि आती है जब हमको अपराधी को सबक सिखाने के लिए बैल या जमानत का विरोध करना पड़ता अगर शिकायत कर्ता लडकी है तो है तो गैर जमानती धारा 437 सी आर पी सी में बैल या जमानत का विरोध करने के लिए कोर्ट की और से आपको नोटिस जायेगा अन्यथा अगर आप पुरुष है तो कोर्ट में एक कैविट की एप्लीकेशन लगा दे, जब भी आरोपी की बैल लगे आप को विरोध के लिए नोटिस मिले ऐसी व्यवस्था कर सकते है
- जब भी आप कोर्ट जाये जो भी आपके मेडिकल के पेपर है आप के पास है उसे साथ ले कर जाये व दिखा कर बैल या जमानत का विरोध करे
- कोर्ट में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब बहुत ही शालीनता व समझ से दे ताकि कोर्ट को ये लगे की आप सही है
- हमेशा कोर्ट में अपराधी के बाहर आने पर स्वय व बाकि गवाहों व सबूतों को प्रभावित होने का आरोप लगाये की अपराधी बैल या जमानत ले कर उसका दुरूपयोग कर सकता है
- अगर कोर्ट अपराधी को बैल दे भी दे तो आप उपर की कोर्ट में उसकी बैल ख़ारिज करवाने की एप्लीकेशन लगा सकते है
- सरकारी वकील व पुलिस यानि आई. ओ. पर पूरी नजर रखे अगर वे अपराधी की तरफदारी करे या उसका बैल होने में साथ दे तो आप उनकी शिकायत कर के इन्हें बदलवा भी सकते है |
- ज्यादा अच्छा हो की आप बैल या जमानत का विरोध करने के लिए अपने वकील साहब अपोइन्ट कर ले तो ज्यादा अच्छा हो |
If, you want legal advice through mobile, please make a call on 9278134222. Advice fees will be applicable for 24 hours.
जय हिन्द
द्वारा
अधिवक्ता धीरज कुमार
इन्हें भी जाने :-
- जानिए गैर जमानती धारा 437 में कब मिलती है बेल और कब जेल ?
- जमानतीय अपराध धारा 436 क्या है तथा इसमें बेल कैसे होती है?
- जानिए क्या है पत्नी गुजारा भत्ता नियम – धारा 125 सी.आर.पी.सी.
- बेल या जमानत क्या होती है कितने प्रकार की होती है तथा कोर्ट से कैसे बेल ले |
- गिरफ्तारी के नियम व अधिकार
- kalandra notice section 107/150/151 cr.p.c. क्या है
- घरेलू हिंसा के केस में सास व ननद के पास क्या क़ानूनी अधिकार है ?
- affidavit / शपथपत्र / हलफनामें के प्रकार
- Will वसीयत क्या है इसे कैसे करे / what is will
Sameer
Criminal procedure 437 laga hua mere dost per bail ho gya tha Central jail lane gye fir wahi ek aur case lag gya bail kaise hoga plz bataiye sir 2 Baar wo jail Ka chuka hai
Advocate_Dheeraj
Sameer जी,
आप कॉल करके सलाह ले डिटेल फीस समेत वेबसाइट पर दी गई है |
Advocate_Dheeraj
Sameer जी,
तरीका है आप कॉल करके सलाह ले डिटेल वेबसाइट पर दी गई है
krishna
420/406/120bye dhara lagi hai mere husband k upper
18/4/2018 se self surrender kiya tha abhi tak bail nahi ho pa rahi plz suggest me and complaint person also file in civil court
Advocate_Dheeraj
krishna ji,
वकील साहब की काबलियत और केस के फैक्ट्स पर बैल निर्भर करती है | अच्छा होगा कॉल करके और FIR की कॉपी दिखा कर सलाह ले |
surrender करना बैल का एक आधार हो सकता है लेकिन बैल होने की गारंटी नही
Sandeep
Sir shandeh ke aadhar par police ne 302,201,34 ka case banai h Jo galat aarop h 110 day se jail me h high court me bail application laga h par same Bali party baar baar obsaction lagarahi h bail kese hongi wo log kitne baar obsaction laga.sakte h obsaction ko galat saabit kese kare yadi high court kharij Kar de to kitne din baar laga sakte h phir se
Advocate_Dheeraj
Sandeep जी,
हर रोज बैल का एक नया ग्राउंड है आप कितनी बार भी लगाये
बैल की जानकारी के लिए आप कॉल करके सलाह ले FIR की कॉपी दिखाए
GIRVAR
Sir dhara 365 lga huaa h mere bhai ko bell kaise hoga
Advocate_Dheeraj
GIRVAR जी,
ऐसे बिना केस के फैक्ट्स जाने नही बता सकता हु | अच्छा हो की आप कॉल करके सलाह ले
jsbrar
ndps case me police ne jutha case banaya hai…fir ke time 10 bje arreset dikhya hai…jabki police station me 3 bje pes huaa hu par video sabut nhi hai call recording hai ..sir kese proov karu
Advocate_Dheeraj
jsbrar जी,
कोर्ट में 91 CRPC में कोर्ट में आवेदन करके काल डिटेल और लोकेशन मंगाए | फिर रिकॉर्डिंग को FSL भेजे|
इन सब के साथ हाई कोर्ट जाए | आप सही साबित हो जायेंगे | केस खत्म हो जाएगा आपको मुआवजा भी मिलेगा
sunita singh
Kis age wale live in me rah sakte he please tell me
Advocate_Dheeraj
boy 21 plus
girl 18 plus
SUCCESSमंत्र
Amazing information thanks
Advocate_Dheeraj
thanks for your comment
sunita singh
APKE JITNE BHI ARTICLE PADHE EK SE BADHKAR EK HAI AAP ESE HI GYAN WERDHAK POST LIKHTE RAHIYE THANKS
Advocate_Dheeraj
thank you. i will try my best.
Himani katiyar
Sir in logo ne anticiotery bail le rakhi 25000 meri husband ka and saas sasur 40000 thousand avm itni hi rashi ka muchkka hara ha and court me hajiri maafi bej dwte ha merw lawyer case fight to ker rhe but sir ye sunwai per ate hi ni ha
Advocate_Dheeraj
आप ये भी बताये की मुझसे क्या जानना चाहती है ???