इस आर्टिकल में जानिए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की पूरी जानकारी आसान भाषा में |
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
धाराओं का क्रम
अध्याय 1
प्रारम्भिक
धाराएं
- संक्षिप्त नाम और विस्तार
- अधिनियम को लागू होना
- परिभाषाएं और निर्वचन
- अधिनियम की अध्यारोही प्रभाव
अध्याय 2
निर्वसीयती उत्तराधिकार
साधारण
- अधिनियम का कुछ सम्पत्तियों को लागू न होना
- सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन
- तरवाड़, तावषि, कुटुम्ब, कबरु या इल्लम की सम्पत्ति में हित का न्यागमन
- पुरुष की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम
- अनुसूची में के वारिसों के बीच उत्तराधिकार का क्रम
- अनूसूची के वर्ग 1 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण
- अनुसूची के वर्ग 2 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण
- गोत्रजों और बन्धुओं में उत्तराधिकार का क्रम
- डिग्रियों की संगणना
- हिन्दू नारी की सम्पत्ति उसकी आत्यन्तितः अपनी सम्पत्ति होगी
- हिन्दू नारी की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम
16, हिन्दू नारी के वारिसों में उत्तराधिकार का क्रम और वितरण की रीति
- मरुमक्कत्तायम और अलियसन्तान विधियों द्वारा शासित व्यक्तियों के विषय में विशेष उपबन्ध
उत्तराधिकार से सम्बन्धित साधारण उपबन्ध
- पूर्वरक्त को अर्धरक्त पर अधिमान प्राप्त है
- दो या अधिक वारिसों के उत्तराधिकार का ढंग
- गर्भस्थित अपत्य का अधिकार
- सम-सामयिक मृत्युओं के विषय में उपधारणा
- कुछ दशाओं में सम्पत्ति अर्जित करने का अधिमानी अधिकार
- निवास-गृह के बारे में विशेष उपबन्ध [विलोपित]
- पुनर्विवाह करने वाली कुछ विधवाएं विधवा होने के नाते विरासत प्राप्त कर सकेंगी [ विलोपित]
- हत्या करने वाला निरर्हित होगा
- संपरिवर्तितों के वंशज निरर्हित होंगे
- उत्तराधिकार जबकि वारिस निरर्हित हो
- रोग, त्रुटि आदि से निरर्हता न होगी
राजगामित्व
- वारिसों का अभाव
अध्याय 3
वसीयती उत्तराधिकारी
- वसीयती उत्तराधिकारी
अध्याय 4
निरसन
- निरसन
अनुसूची
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
[1956 का अधिनियम संख्यांक 30]
हिन्दुओं में निर्वसीयती उत्तराधिकार सम्बन्धी विधि को संशोधित और संहिताबद्ध करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के सातवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :–
अध्याय 1
प्रारम्भिक
- संक्षिप्त नाम और विस्तार–(1) यह अधिनियम हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 कहा जा सकेगा
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है
- अधिनियम को लागू होना–(1) यह अधिनियम लागू है—
(क) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत अथवा ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज या आर्य समाज के अनुयायी भी आते हैं, धर्मतः हिन्दू हो ;
(ख) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो धर्मतः बौद्ध, जैन या सिक्ख हो; तथा
(ग) ऐसे किसी भी अन्य व्यक्ति को जो धर्मतः मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी या यहूदी न हो, जब तक कि यह साबित न कर दिया जाय कि यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो ऐसा कोई भी व्यक्ति एतस्मिन् उपबन्धित किसी भी बात के बारे में हिन्दू विधि या उस विधि के भाग रूप किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा शासित न होता
स्पष्टीकरण– हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार निम्नलिखित व्यक्ति धर्मतः यथास्थिति, हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख है :–
(क) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज जिसके माता-पिता दोनों ही धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या | सिक्ख हों ;
(ख) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता में से कोई एक धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो और जो उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के सदस्य के रूप में पला हो जिसका वह माता या पिता सदस्य है या था; |
(ग) कोई भी ऐसा व्यक्ति जो हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख धर्म में संपरिवर्तित या प्रतिसपरिवर्तित हो गया हो
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई भी बात किसी ऐसी जनजाति के सदस्यों को, जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (25) के अर्थ के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति हो, लागू न होगी जब तक कि केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न कर दे ।
(3) इस अधिनियम के किसी भी प्रभाग में आए हुए ”हिन्दू” पद का ऐसा अर्थ लगाया जाएगा मानो उसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता हो जो यद्यपि धर्मतः हिन्दू नहीं है तथापि ऐसा व्यक्ति है जिसे यह अधिनियम इस धारा में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के आधार पर लागू होता है
- परिभाषाएं और निर्वचन— (1) हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो—
(क) “गोत्रज” एक व्यक्ति दूसरे का गोत्रज” कहा जाता है यदि वे दोनों केवल पुरुषों के माध्यम से रक्त या दत्तक द्वारा एक-दूसरे से सम्बन्धित हों ;
(ख) “अलियसन्तान विधि” से वह विधि-पद्धति अभिप्रेत है जो ऐसे व्यक्ति को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया हो तो मद्रास अलियसन्तान ऐक्ट, 1949 (मद्रास ऐक्ट 1949 का 9) द्वारा या रूढ़िगत अलियसन्तान विधि द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होता जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है
(ग) “बन्धु’–एक व्यक्ति दूसरे का ‘बन्धु” कहा जाता है यदि वे दोनों रक्त या दत्तक द्वारा एक दूसरे से सम्बन्धित हों किन्तु केवल पुरुषों के माध्यम से नहीं;
(घ) “रूढ़ि” और ”प्रथा” पद ऐसे किसी भी नियम का संज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो । परन्तु यह तब जब कि नियम निश्चित हो और अयुक्तियुक्त या लोक नीति के विरुद्ध न हो :
तथा
परन्तु यह और भी कि ऐसे नियम की दशा में जो एक कुटुम्ब को ही लागू हो, उसकी निरन्तरता उस कुटुम्ब द्वारा बन्द न कर दी गई हो;
(ङ) “पूर्णरक्त”, “अर्धरक्त’ और “एकोदररक्त”–
(i) कोई भी दो व्यक्ति एक-दूसरे से पूर्ण रक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से उसकी एक ही पत्नी द्वारा अवजनित हुए हों, और अर्धरक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से किन्तु उसकी भिन्न पत्नियों द्वारा अवजनित हुए हों;
(ii) दो व्यक्ति एक-दूसरे से एकोदररक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वजा से किन्तु उसके भिन्न पतियों से अवजनित हुए हों; –
स्पष्टीकरण– इस खण्ड में पूर्वज” पद के अन्तर्गत पिता आता है और पूर्वजा” के अन्तर्गत माता आती है;
(च) “वारिस” हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार ऐसा कोई भी व्यक्ति अभिप्रेत है चाहे वह पुरुष हो, या नारी, जो निर्वसीयत की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी होने का इस अधिनियम के अधीन हकदार है;
(छ) “निर्वसीयत”-कोई व्यक्ति चाहे पुरुष हो या नारी, जिसने किसी सम्पत्ति के बारे में ऐसा वसीयती व्ययन न किया हो जो प्रभावशील होने योग्य हो, वह उस सम्पत्ति के विषय में निर्वसीयत मरा समझा जाता है
(ज) “मरुमक्कत्तायम् विधि” से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है
(क) जो यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो मद्रास मरुमक्कत्तीयम ऐक्ट, 1932 (मद्रास अधिनियम 1933 का 22), ट्रावन्कोर नायर ऐक्ट (1100-के का 2), ट्रावन्कोर ईषवा ऐक्ट (1100-के को 3), ट्रावन्कोर नान्जिनाड वेल्लाल ऐक् (1101-के का 6), ट्रावन्कोर क्षेत्रीय ऐक्ट 1108-के का 7), ट्रावन्कोर कृष्णवका मरुमक्कत्तायी ऐक्ट (1115-के का 7), कोचीन मरुमक्कत्तायम् ऐक्ट (1113-के का 33), या कोचीन नायर ऐक्ट (1113-के का 29) द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है; अथवा
(ख) जो ऐसे समुदाय के हैं जिसके सदस्य अधिकतर तिरुवांकुर कोचीन या मद्रास राज्य में, जैसा कि वह पहली नवम्बर, 1956 के अव्यवहित पूर्व अस्तित्व में था, अधिवासी हैं और यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो जो उन विषयों के बारे में जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है विरासत की ऐसी पद्धति द्वारा शासित होते जिसमें नारी परम्परा के माध्यम से अवजनन गिना जाता है;
किन्तु इसके अन्तर्गत अलियसन्तान विधि नहीं आती;
(झ) “नंबूदिरी विधि” से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मद्रास नंबूदिरी ऐक्ट, 1932 (मद्रास अधिनियम 1933 का 21), कोचीन नम्बूदिरी ऐक्ट (1113 का. 17), या ट्रावन्कोर मलायल्ल ब्राह्मण ऐक्ट (110% का 3), द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है;
(अं:) “सम्बन्धित” से अभिप्रेत है, धर्मज द्वारा सम्बन्धित :
परन्तु अधर्मज अपत्य अपनी माता से परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और उनके धर्मज वंशज उनसे और परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और किसी भी ऐसे शब्द का जो सम्बन्ध को अभिव्यक्त करे या संबंधी को घोषित करे तदनुसार अर्थ लगाया जायगा। |
(2) इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, पुल्लिग संकेत करने वाले शब्दों के अन्तर्गत नारियां न समझी जाएंगी |
- अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव- (1) इस अधिनियम में अभिव्यक्ततः उपबन्धित के सिवाय —
(क) हिन्दू विधि का कोई ऐसा शास्त्र-वाक्य, नियम या निर्वचन या उस विधि की भागरूप कोई भी रूढ़ि या प्रथा, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के अव्यवहित पूर्व प्रवृत्त रही हो, ऐसे किसी भी विषय के बारे में, जिसके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है, प्रभावहीन हो जाएगी;
(ख) इस अधिनियम के प्रारम्भ के अव्यवहित पूर्व प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि का हिन्दुओं को लागू होना वहाँ तक बन्द हो जाएगा जहां तक कि वह इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट उपबन्धों में से किसी से भी असंगत हो |
अध्याय 2
निर्वसीयती उत्तराधिकार
साधारण
- अधिनियम का कुछ सम्पत्तियों को लागू न होना-यह अधिनियम निम्नलिखित को लागू न होगा–
(i) ऐसी किसी सम्पत्ति को जिसके लिए उत्तराधिकार, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (1954 का 43) की धारा 21 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के कारण भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (1925 का 39) द्वारा विनियमित होता है;
(ii) ऐसी किसी सम्पदा को जो किसी देशी राज्य के शासक द्वारा भारत सरकार से की गई किसी प्रसंविदा या करार के निबन्धनों द्वारा इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व पारित किसी अधिनियमिति के निबन्धनों द्वारा किसी एकल वारिस को अवजनित हुई है;
(iii) वलियम्म तंबुरान कोविलगम् सम्पदा और पैलेस फण्ड को जो कि महाराजा कोचीन द्वारा 29 जून, 1949 को प्रख्यापित उद्घोषणा (1124-के क 9) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर पैलेस एडमिनिस्ट्रेशन बोर्ड द्वारा प्रशासित है ।
टिप्पणी
यदि भूमि विधियाँ कृषि भूमि पर न्यागमन के अधिकारों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान निर्मित करती हैं। तब इस अधिनियम के प्रावधान अधिभावी होंगे। (बाजया बनाम गोपिका बाई, AIR 1978 SC 793) ।
- सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन— (1) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पर और से, मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार में, सहदायिक की पुत्री–
(क) जन्म से उसी ढंग में अपने अधिकार में सहदायिक होगी, जैसे पुत्र,
(ख) को सहदायिकी सम्पत्ति में वही अधिकार होगा, जैसा उसे होता, यदि वह पुत्र होता,
(ग) उक्त सहदायिकी सम्पत्ति के सम्बन्ध में उन्हीं दायित्वों के अध्यधीन होगी, जैसे पुत्र का दायित्व है ।
और हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का कोई निदेश सहदायिक की पुत्री के निर्देश को शामिल करने वाला माना जायेगा ।
परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज सम्पत्ति के किसी विभाजन या वसीयती विन्यास को, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व किया गया है, शामिल करके किसी विन्यास या अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगी या अविधिमान्य नहीं बनायेगी ।
(2) कोई सम्पत्ति, जिसमें महिला हिन्दू उपधारा (1) के परिणामस्वरूप हकदार होती है, उसके द्वारा सहदायिकी स्वामित्व की घटना के साथ धारण की जायेगी और इस अधिनियम या तत्समय प्रवर्तित किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी चीज के होते हुये भी वसीयती विन्यास द्वारा उसके द्वारा व्ययन करने योग्य सम्पत्ति मानी जायेगी ।
(3) जहाँ हिन्दू की मृत्यु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद होती है। वहाँ मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन वसीयती या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा, यथास्थिति, निगमित होगा और उत्तरजीविता के द्वारा नहीं; और सहदायिकी सम्पत्ति विभाजित की गयी मानी जायेगी, मानों विभाजन हुआ था और,
(क) पुत्री को वही अंश आवंटित किया जाता है, जो पुत्र को आवंटित किया जाता है,
(ख) पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री का अंश, जिसे वे प्राप्त करते, यदि वे विभाजन के समय जीवित रहते, ऐसे पूर्व मृत पुत्र के या ऐसे पूर्व मृत पुत्री के उत्तरजीवी सन्तान को आवंटित किया जायेगा, और
(ग) पूर्व मृत पुत्र के या पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत सन्तान का अंश, जिसे ऐसी सन्तान प्राप्त करता, यदि वह विभाजन के समय जीवित रहता या रहती, पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री के, यथास्थिति, के पूर्व मृत सन्तान की सन्तान को आवंटित किया जायेगा ।
स्पष्टीकरण– इस धारा के प्रयोजनों के लिये हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का हित सम्पत्ति में वह अंश समझा जायेगा जो उसे विभाजन में मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु में अव्यवहित पूर्व सम्पत्ति का विभाजन किया गया होता इस बात का विचार किये बिना कि वह विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं ।
(4) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद; कोई न्यायालय पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध उसके पिता, पितामह-प्रपितामह से किसी बकाया ऋण की वसूली के लिये एकमात्र हिन्दू विधि के अधीन पवित्र कर्तव्य के आधार पर किसी ऐसे ऋण का उन्मोचन करने के लिए ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के हिन्दू विधि के अधीन पवित्र आबद्धता के आधार पर कार्यवाही करने के किसी अधिकार को मान्यता नहीं देगा ।
परन्तु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के पूर्व लिये गये किसी ऋण के मामले में इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज-
(क) पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध, यथास्थिति, कार्यवाही करने के लिये किसी लेनदार के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा, या ।
(ख) किसी ऐसे ऋण के सम्बन्ध में या की तुष्टि में किये गये किसी अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगा और कोई ऐसा अधिकार या अन्य संक्रमण उसी ढंग में और उसी विस्तार तक पवित्र कर्तव्य के नियम के अधीन प्रवर्तनीय होगा, जैसे यह प्रवर्तनीय होता, मानों हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 प्रवर्तित किया गया है |
स्पष्टीकरण– खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिये अभिव्यक्ति ”पुत्र”, ”पौत्र” या ”प्रपौत्र” को पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र को, यथास्थिति निर्दिष्ट करने वाला माना जायेगा, जिसे हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पूर्व जन्मा था या दत्तक लिया गया था। |
(5) इस धारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज उस विभाजन को लागू नहीं होगी, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व हुआ था ।
स्पष्टीकरण— इस धारा के प्रयोजनों के लिये ”विभाजन” से रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन सम्यक् रूप से पंजीकृत विभाजन विलेख के निष्पादन द्वारा किया गया कोई विभाजन, न्यायालय के डिक्री द्वारा किया गया विभाजन अभिप्रेत है
टिप्पणी
पुष्पलता एन० वी० बनाम वी० पद्मा, ए० आई० आर० 2010 कर्नाटक 124- हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 के द्वारा मिताक्षरा सहदायिकी में पुत्री को भी सहदायिक बना दिया गया है किन्तु मात्र ऐसी पुत्री ही एक सहदायिक होगी जो कि अधिनियम के प्रवर्तन की तिथि अर्थात् 17.6.1956 के बाद पैदा हुयी हो। पुत्री के विवाह से उसका सहदायिक के रूप में अधिकार समाप्त नहीं होगा जो कि उसने जन्मतः प्राप्त किया है ।
गनाचारी वीरैया @ वीरेशाम @ शंकरैयाह बनाम गनाचारी शिवा रंजनी, ए० आई० आर० 2010 (एन० ओ० सी०) 351 (आ० प्र०)-हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के द्वारा संशोधित हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 ने सहदायिकी अधिकारों के सम्बन्ध में मिताक्षरा संयुक्त हिन्दू परिवार के पुरूष एवं महिला सदस्यों के अन्तर को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया है |
गण्डूरी कोटेश्वरम्मा बनाम चाकिरी यनाडी, ए० आई० आर० 2012 सुप्रीम कोर्ट 169-हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की नयी धारा 6, 9 सितम्बर, 2005 से संयुक्त हिन्दू परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों के मध्य अधिकारों की समानता का उपबन्ध करती है ।
प्रकाश बनाम फूलवती, ए० आई० आर० 2016 सुप्रीम कोर्ट 769-हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत दिये गये अधिकार संशोधन अधिनियम के प्रारम्भ की तिथि पर (अर्थात् 9, सितम्बर, 2005) जीवित, सहदायिकों की जीवित पुत्रियों पर लागू होता है। पुत्री की जन्म तिथि महत्वहीन है ।
निर्वसीयती मृतक पुरुष की स्वार्जित सम्पत्ति में उसकी विधवा, पुत्र और पुत्रियां धारा 8 में प्रतिपादित उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार विरासत में बराबर-बराबर अंश प्राप्त करेंगी। (भगवत प्रसाद भगत बनाम शंकर भगत, ए० आई० आर० 2009 एन० ओ० सी० 2204 पटना) |
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रभाव में आने से पूर्व संविदा के विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री के निष्पादन में विक्रय की गई सहदायिकी सम्पत्ति में पुत्रियां अंश पाने की हक़दार नहीं हैं। (तसवीर पाल कौर बनाम सुख महिन्दर सिंह, ए० आई० आर० 2009 एन० ओ० सी० 2005 पंजाब एण्ड हरियाणा) |
- तरवाड, तावषि, कुटुम्ब, कबरु या इल्लम की सम्पत्ति में हित का न्यागमन— (1) जब कि कोई हिन्दू जिसे यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मरुमक्कत्तायम या नंदिरी विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पत्ति में हित रखते हुए मरे तब सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती या निर्वसीयती उतराधिकार द्वारा न्यागत होगा, मरुमक्कत्तायम् या नंबूदिरी विधि के अनुसार नहीं ।
स्पष्टीकरण– इस उपधारा के प्रयोजन के लिए तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पत्ति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पत्ति में वह अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पत्ति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अपने को लागू मरुमक्कत्तायम या नंबूदिरी विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बांट में आत्यंतिकतः दे दिया गया समझा जाएगा। |
(2) जबकि कोई हिन्दू, जिसे यदि वह अधिनियम पारित न किया गया होता तो अलियसन्तान विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरू की सम्पत्ति में अविभक्त हित रखते हुए मरे तब सम्पत्ति में उसका अपना हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती, या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा न्यागत होगा, अलियसन्तान विधि के अनुसार नहीं ।
स्पष्टीकरण– इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पत्ति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अलियसन्तान विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बाँट में आत्यंतिकतः दे दिया गया समझा जाएगा ।
(3) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जबकि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् कोई स्थानम्दार मरे तब उसके द्वारा धारित स्थानम् सम्पत्ति उस कुटुम्ब के सदस्यों को जिसका वह स्थानदार है और स्थानम्दार के वारिसों को ऐसे न्यागत होगी मानो स्थानम् सम्पत्ति स्थानम्दार और उसके उस समय जीवित कुटुम्ब के सब सदस्यों के बीच स्थानमूदार की मृत्यु के अव्यवहित पूर्व व्यक्तिवार तौर पर विभाजित कर दी गई थी और स्थानम्दार के कुटुम्ब के सदस्यों और स्थानम्दार के वारिसों को जो अंश मिले उन्हें वे अपनी पृथक् सम्पत्ति के तौर पर धारित करेंगे ।
स्पष्टीकरण— इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए स्थानमुदार के कुटुम्ब के अन्तर्गत उस कुटुम्ब की, चाहे विभक्त हो या अविभक्त, हर वह शाखा आएगी जिसके पुरुष सदस्य यदि अधिनियम पारित न किया गया होता तो किसी रूढ़ि या प्रथा के आधार पर स्थानम्दार के पद पर उत्तरवर्ती होने के हकदार होते ।
- पुरुष की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम- निर्वसीयत मरने स्नाले हिन्दू पुरुष की सम्पत्ति इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार निम्नलिखित को न्यागत होगी :-
(क) प्रथमतः, उन वारिसों को, जो अनुसूची के वर्ग 1 में विनिर्दिष्ट सम्बन्धी हैं; –
(ख) द्वितीयतः, यदि वर्ग 1 में वारिस न हों तो उन वारिसों को जो अनुसूची के वर्ग 2 में विनिर्दिष्ट सम्बन्धी हैं;
(ग) तृतीयतः, यदि दोनों वर्गों में से किसी में का कोई वारिस न हो तो मृतक के गोत्रजों को; तथा
(घ) अन्ततः, यदि कोई गोत्रज न हो तो मृतक के बन्धुओं को ।
टिप्पणी
धारा 8 के प्रावधान भूतलक्षी प्रभाव नहीं रखते हैं। (एरम्मा बनाम बेरुपना, AIR 1966 SC 1879) पति से दूसरा विवाह करने से पूर्व पहली पत्नी से विवाह विच्छेद नहीं कराया अर्थात् उसके विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त नहीं की। उसका दूसरा विवाह अकृत एवं शून्य होगा। पहली पत्नी उसकी सम्पत्ति को विरासत में पाने की हकदार होगी। पत्नी का असतीत्व उसे विरासत से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता। (श्रीमती दलजीत कौर उर्फ टोनी बनाम श्रीमती अमरजीत कौर, ए० आई० आर० 2009 पंजाब एण्ड हरियाणा 118)
- अनुसूची में के वारिसों के बीच उत्तराधिकार का क्रम– अनूसूची में विनिर्दिष्ट वारिसों में के वर्ग 1 में के वारिस एक साथ और अन्य सब वारिसों का अपवर्जन करते हुए अंशभागी होंगे; वर्ग 2 में की पहली प्रविष्टि में के वारिसों को दूसरी प्रविष्टि में के वारिसों की अपेक्षा अधिमान प्राप्त होगा; दूसरी प्रविष्टि में के वारियों को तीसरी प्रविष्टि में के वारिसों की अपेक्षा अधिमान प्राप्त होगा और इसी प्रकार आगे क्रम से अधिमान प्राप्त होगा।
- अनूसूची के वर्ग 1 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण– निर्वसीयत की सम्पत्ति अनुसूची के वर्ग 1 में वारिसों में निम्नलिखित नियमों के अनुसार विभाजित की जाएगी :
नियम 1- निर्वसीयत की विधवा को या यदि एक से अधिक विधवाएं हों तो सब विधवाओं को मिलाकर एक अंश मिलेगा
नियम 2- निर्वसीयत के उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों और माता हर एक को एक-एक अंश मिलेगा
नियम 3- निर्वसीयत के हर एक पृर्वमृत पुत्र की या हर एक पूर्वमृत पुत्री की शाखा में के सब वारिसों को मिलाकर एक अंश मिलेगा
नियम 4- नियम 3 में निर्दिष्ट अंश का वितरण
- पूर्वमृत पुत्र की शाखा में के वारिसों के बीच ऐसे किया जाएगा कि उसकी अपनी विधवा को (या सब विधवाओं को मिलाकर) और उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हों, और उसके पूर्वमृत पुत्रों की शाखा को वही भाग प्राप्त हो;
- पूर्वमृत पुत्री की शाखा में के वारिसों के बीच ऐसे किया जायगा कि उत्तरजीवी पुत्रों और पुत्रियों को बराबर भाग प्राप्त हो
- अनुसूची के वर्ग 2 में के वारिसों में सम्पत्ति का वितरण-– अनुसूची के वर्ग 2 में किसी एक प्रविष्टि में विनिर्दिष्ट वारिसों के बीच निर्वसीयत की सम्पत्ति ऐसे विभाजित की जाएगी कि उन्हें बराबर अंश मिले ।
टिप्पणी
एक सगा भाई सौतेले को अपवर्जित करेगा तथा एक सगी बहन सौतेली बहन को अपवर्जित करेगी। परन्तु जहाँ एक सौतेला, भाई तथा सगी बहन हैं वहाँ पहले को अपवर्जित नहीं किया जा सकता है। (पुरुषोत्तम बनाम श्रीपाल, ए० आई० आर० 1976 बाम्बे 379)
- गोत्रजों और बन्धुओं में उत्तराधिकार का क्रम— गोत्रजों और बंधुओं में, यथास्थिति, उत्तराधिकार का क्रम यहाँ नीचे दिए हुए अधिमान के नियमों के अनुसार अवधारित किया जाएगा
नियम 1– दो वारिसों में से से अधिमान प्राप्त होगा जिसकी उपरली ओर की डिग्रियाँ अपेक्षातर कम हों या हों ही नहीं ।
नियम 2– जहां कि उपरली ओर की डिग्रियों की संख्या एक समान हों या हों ही नहीं उस वारिस को अधिमान प्राप्त होगा, जिसकी निचली ओर की डिग्रियां अपेक्षातर कम हों या हों ही नहीं
नियम 3– जहां कि नियम 1 या नियम 2 के अधीन कोई-सा भी वारिस दूसरे से अधिमान का हकदार न हो वहां वे दोनों साथ-साथ अंशभागी होंगे |
- डिग्रियों की संगणना– (1) गोत्रजों या बन्धुओं के बीच उत्तराधिकार क्रम के अवधारण के प्रयोजन के लिए निर्वसीयत से, यथास्थिति, उपरली डिग्री या निचली डिग्री या दोनों के अनुसार वारिस के सम्बन्ध की संगणना की जाएगी। |
(2) उपरली डिग्री और निचली डिग्री की संगणना निर्वसीयत को गिनते हुए की जाएगी ।
(3) हर पीढ़ी एक डिग्री गठित करती है चाहे उपरली चाहे निचली ।
- हिन्दू नारी की सम्पत्ति उसकी आत्यन्तिकतः अपनी सम्पत्ति होगी— (1) हिन्दू नारी के कब्जे में की कोई भी सम्पत्ति, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व या पश्चात् अर्जित की गई हो, उसके द्वारा पूर्ण स्वामी के तौर पर न कि परिसीमित स्वामी के तौर पर धारित की जाएगी ।
स्पष्टीकरण– इस उपधारा में ”सम्पत्ति” के अन्तर्गत वह जंगम और स्थावर सम्पत्ति आती है जो हिन्दू नारी ने विरासत द्वारा अथवा वसीयत द्वारा अथवा विभाजन में अथवा भरण-पोषण के या भरण-पोषण की बकाया के बदले में अथवा अपने विवाह के पूर्व या विवाह के समय या पश्चात् दान द्वारा किसी व्यक्ति से, चाहे वह सम्बन्धी हो या न हो, अथवा अपने कौशल या परिश्रम द्वारा अथवा क्रय द्वारा अथवा चिरभोग द्वारा अथवा किसी अन्य रीति से, चाहे वह कैसी ही क्यों न हों, अर्जित की हो और ऐसी कोई सम्पत्ति भी जो इस अधिनियम के प्रारम्भ से अव्यवहित पूर्व स्त्रीधन के रूप में उसके द्वारा धारित थी ।
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट कोई बात ऐसी किसी सम्पत्ति को लागू नहीं होगी जो दान अथवा बिल द्वारा या अन्य किसी लिखत के अधीन अथवा सिविल न्यायालय की डिक्री या आदेश के अधीन या पंचाट के अधीन अर्जित की गई हो यदि, दान, बिल या अन्य लिखत अथवा डिक्री, आदेश या पंचाट के निबन्धन ऐसी सम्पत्ति में निर्बन्धित सम्पदा विहित करते हों ।
टिप्पणी
चेरोटे सुगाथन बनाम चेरोटे भरेठी, ए० आई० आर० 2008 सुप्रीम कोर्ट 1465-यदि कोई विधवा अपने पति के मरने के उपरान्त उसकी सम्पत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त करती है तो वह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 (1) के अनुसार ऐसी सम्पत्ति की पूर्ण स्वामिनी हो जाती है
शिवदेव कौर बनाम आर० एस० ग्रेवाल, ऐ० आई० आर० 2013 सुप्रीम कोर्ट 1620-धारा 14 की उपधारा (2) के प्रावधान परन्तुक की प्रकृति का है। यह उपधारा (1) का अपवाद है। जहाँ पर सम्पत्ति किसी हिन्दू स्त्री द्वारा वसीयत या दान में केवल आजीवन हित के रूप में प्राप्त हुयी है वहाँ वह उसकी पूर्ण स्वामिनी नहीं हो सकती है ।
जहाँ, किसी संयुक्त हिन्दू परिवार के सदस्य द्वारा समझौते के अन्तर्गत, एक हिन्दू विधवा को उसके भरण-पोषण के लिए कुछ सम्पत्ति दी जाती है वह सम्पत्ति उसकी पूर्व सम्पत्ति होगी। (मंगतमल बनाम पुन्नी देवी, ए० आई० आर० 1996 सुप्रीम कोर्ट 146)
जहां कोई विधवा किरायेदार के रूप में सम्पत्ति पर काबिज हो और वह न तो सम्पत्ति की स्वामी रही हो और न उसे सम्पत्ति विरासत के तौर पर मिली हो या मिलने वाली हो। वहाँ उसकी किरायेदारी स्वामित्व में नहीं बदल सकती। (श्रीमती मूर्ति देवी बनाम पंचम एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज, गाजियाबाद, ए० आई० आर० 2009 एन० ओ० सी० 1989 इलाहाबाद)
- हिन्दू नारी की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम– (1) निर्वसीयत मरने वाली हिन्दू नारी की सम्पत्ति धारा 16 में दिए गए नियमों के अनुसार निम्नलिखित को न्यागत होगी :–
(क) प्रथमतः, पुत्रों और पुत्रियों (जिसके अन्तर्गत किसी पूर्वमृत पुत्र या पुत्री के अपत्य भी हैं) और पति को;
(ख) द्वितीयतः, पति के वारिसों को;
(ग) तृतीयत:, माता और पिता को;
(घ) चतुर्थतः, पिता के वारिसों कोः तथा
(ङ) अन्ततः, माता के वारिसों को |
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी—
(क) कोई सम्पत्ति जिसकी विरासत हिन्दू नारी को अपने पिता या माता से प्राप्त हुई हो, मृतक के पुत्र या पुत्री के (जिसके अन्तर्गत किसी पूर्वमृत पुत्र या पुत्री के अपत्य भी आते हैं) अभाव में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अन्य वारिसों को उसमें विनिर्दिष्ट क्रम से न्यागत न होकर पिता के वारिसों को न्यागत होगी; तथा ।
(ख) कोई सम्पत्ति जो हिन्दू नारी को अपने पति या अपने श्वसुर से विरासत में प्राप्त हुई हो मृतक के किसी पुत्र या पुत्री के (जिसके अन्तर्गत किसी पूर्वमृत पुत्र या पुत्री या अपत्य भी आते हैं) अभाव में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अन्य वारिसों को उसमें विनिर्दिष्ट क्रम से न्यागत न होकर पति के वारिसों को न्यागत होगी ।
टिप्पणी
धारा 15(1) (क) में उल्लेखित वारिसों की अनुपस्थिति में धारा 15(1) के खण्ड (b) में उल्लेखित वारिस उत्तराधिकारी होंगे। (लक्ष्मन सिंह बनाम कृपा सिंह, AIR 1987 SC 1616)
- हिन्दू नारी के वारिसों में उत्तराधिकार का क्रम और वितरण की रीति– धारा 15 में निर्दिष्ट वारिसों में उत्तराधिकार का क्रम और उन वारिसों में निर्वसीयत की सम्पत्ति का वितरण निम्नलिखित नियमों के अनुसार होगा, अर्थात् :–
नियम 1– धारा 15 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट वारिसों में से पहली प्रविष्टि में के वारिसों को किसी उत्तरवर्ती प्रविष्टि में के वारिसों की तुलना में अधिमान प्राप्त होगा और जो वारिस एक ही प्रविष्टि के अन्तर्गत हों, वे साथ-साथ अंशभागी होंगे
नियम 2– यदि निर्वसीयत का कोई पुत्र या पुत्री अपने ही कोई अपत्य निर्वसीयत की मृत्यु के समय जीवित छोड़कर निर्वसीयत से पूर्व मर जाए तो ऐसे पुत्र या पुत्री के अपत्य परस्पर वह अंश लेंगे जिसे वह लेती यदि निर्वसीयत की मृत्यु के समय ऐसा पुत्र या पुत्री जीवित होती
नियम 3– धारा 15 की उपधारा (1) के खण्ड (ख), (घ) और (ङ) और उपधारा (2) में निर्दिष्ट वारिसों को निर्वसीयत की सम्पत्ति उसी क्रम में और उन्हीं नियमों के अनुसार न्यागत होगी जो लागू होते यदि सम्पत्ति, यथास्थिति, पिता की या माता की या पति की होती और वह व्यक्ति निर्वसीयत की मृत्यु के अव्यवहित पश्चात् उस सम्पत्ति के बारे में वसीयत किए बिना मर गया होता
- मरुमक्कत्तायम और अलियसन्तान विधियों द्वारा शासित व्यक्तियों के विषय में विशेष उपबन्ध–धाराओं 8, 10, 15 और 23 के उपबन्ध उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मरुमक्कत्तायम विधि या अलियसन्तान विधि द्वारा शसित होते, ऐसे प्रभावशील होंगे मानो–
(i) धारा 8 के उपखण्डों (ग) और (घ) के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित कर दिया गया हो,
अर्थात्—
(ग) तृतीयतः, यदि दोनों वर्गों में किसी का कोई वारिस न हो तो उसके सम्बन्धियों को चाहे वे गोत्रज़ हों या बन्धु हों ”
(ii) धारा 15 की उपधारा (1) के खण्ड (क) से लेकर (ङ) तक के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित कर दिया गया हो, अर्थात्—
(क) प्रथमतः, पुत्रों और पुत्रियों को (जिनके अन्तर्गत किसी पूर्वमृत पुत्र या पुत्री के अपत्य भी आते हैं) और माता को;
(ख) द्वितीयतः, पिता और पति को;
(ग) तृतीयतः, माता के वारिसों को;
(घ) चतुर्थतः, पिता के वारिसों को; तथा :
(ङ) अन्ततः पति के वारिसों को।”;
(iii) धारा 15 की उपधारा (2) को खण्ड (क) लुप्त कर दिया गया हो;
(iv) धारा 23 लुप्त कर दी गई हो ।
उत्तराधिकार से सम्बन्धित साधारण उपबन्ध
- परक्त को अर्धरक्त पर अधिमान प्राप्त है– निर्वसीयत से पर्णरक्त सम्बन्ध रखने वाले वारिसों को अर्धरक्त सम्बन्ध रखने वाले वारिसों पर अधिमान प्राप्त होगा यदि उस संम्बन्ध की प्रकृति सब प्रकार से वही हो ।
टिप्पणी
पूर्णरक्त को अर्द्धरक्त पर पूर्वता प्रदान की जाती है। पूर्णरक्त की महिला दायाद अर्द्धरक्त के पुरुष दायाद को अपवर्जित करेगी। (एस० यू० चाम्बरें बनाम पी० के० चाटूखोड़पे, ए० आई० आर० 2009 बम्बई 103)
- दो या अधिक वारिसों के उत्तराधिकार का ढंग– यदि दो या अधिक वारिस निर्वसीयत की सम्पत्ति के एक साथ उत्तराधिकारी होते हैं तो वे सम्पत्ति को निम्नलिखित प्रकार से पायेंगे-
(क) इस अधिनियम में अभिव्यक्त तौर पर अन्यथा उपबन्धित के सिवाय व्यक्तिवार, न कि शाखावार | आधार पर लेंगे; और
(ख) सामान्यिक अभिधारियों की हैसियत में न कि संयुक्त अभिधारियों की हैसियत में लेंगे
- गर्भस्थित अपत्य का अधिकार— जो अपत्य निर्वसीयत की मृत्यु के समय गर्भ में स्थित था और जो तत्पश्चात् जीवित पैदा हुआ हो उसके निर्वसीयत की विरासत के विषय में वही अधिकार होंगे जो उसके होते यदि वह निर्वसीयत की मृत्यु के पूर्व पैदा होता; और ऐसी दशा में विरासत निर्वसीयत की मृत्यु की तारीख से उसमें निहित समझी जाएगी।
- सम-सामयिक मृत्युओं के विषय में उपधारणा— जहां कि दो व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में मरे हों जिनमें यह अभिनिश्चित हो कि उनमें से कोई दूसरे का उत्तरजीवी रहा या नहीं और रहा तो कौन सी, वहां जब तक प्रतिकूल साबित न किया जाए, सम्पत्ति के उत्तराधिकार सम्बन्धी सब प्रयोजनों के लिए यह उपधारणा की जाएगी कि कनिष्ठ ज्येष्ठ का उत्तरजीवी रहा |
- कुछ दशाओं में सम्पत्ति अर्जित करने का अधिमानी अधिकार— (1) जहां कि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् निर्वसीयती को किसी स्थावर सम्पत्ति में या उसके द्वारा चाहे स्वयं या दूसरों के साथ किए जानेवाले किसी कारबार में के हित में अनुसूची के वर्ग 1 में विनिर्दिष्ट दो या अधिक वारिसों को न्यागत हों और ऐसे वारिसों में से कोई उस सम्पत्ति या कारबार में अपने हित के अन्तरण की प्रस्थापना करे वहां ऐसे अन्तरित किए जाने के लिए प्रस्थापित हित को अर्जित करने का अधिमानी अधिकार दूसरे वारिसों को प्राप्त होगा |
(2) मृतक की सम्पत्ति में कोई हित जिस प्रतिफल के लिए इस धारा के अधीन अन्तरित किया जा सकेगा, वह पक्षकारों के बीच किसी करार के अभाव में इस निमित्त किए गए आवेदन पर न्यायालय द्वारा अवधारित किया जाएगा और यदि उस हित को अर्जित करने की प्रस्थापना करने वाला कोई व्यक्ति ऐसे अवधारित प्रतिफल पर उसे आजत करने के लिए राजी न हो तो ऐसा व्यक्ति उस आवेदन के, या उससे आनुषंगिक सब खर्चे को देने का दायी होगा
(3) यदि इस धारा के अधीन किसी हित के अर्जित करने की प्रस्थापना करने वाले अनुसूची के वर्ग 1 में विनिर्दिष्ट दो या अधिक वारिस हों तो उस वारिस को अधिमान दिया जाएगा जो अन्तरण के लिए अधिकतम प्रतिफल देने की पेशकश करे
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 : स्पष्टीकरण–
इस धारा में न्यायालय” से वह न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की सीमाओं के अन्दर वह स्थावर सम्पत्ति आस्थित है या कारबार किया जाता है और इसके अन्तर्गत ऐसा कोई अन्य न्यायालय भी आता है जिसे राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे
- निवास-गृह के बारे में विशेष उपबन्ध– हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया
- पुनर्विवाह करने वाली कुछ विधवाएँ विधवा होने के नाते विरासत प्राप्त कर सकेंगी— [हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 5 द्वारा विलोपित]
- हत्या करने वाला निरहित होगा– जो व्यक्ति हत्या करता है या हत्या करने का दुष्प्रेरण करता है। वह हत व्यक्ति की सम्पत्ति या ऐसी किसी अन्य सम्पत्ति को, जिसमें उत्तराधिकार को अग्रसर करने के लिए उसने हत्या की थी या हत्या करने का दुष्प्रेरण किया था, विरासत में पाने से निरहित होगा |
टिप्पणी
हत्यारा सम्पत्ति विरासत में प्राप्त नहीं कर सकता। पत्नी पर पति की हत्या का या हत्या के दुष्प्रेरण का आरोप हो, लेकिन वह दोषमुक्त कर दी गई हो तो विरासत के लिए निरर्ह नहीं होगी। (सरिता चौहान बनाम चेतन चौहान, ए० आई० आर० 2007 बम्बई 133)
- संपरिवर्तितों के वंशज निरहित होंगे—जहां कि कोई हिन्दू उस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् धर्म-संपरिवर्तन के कारण हिन्दू न रह गया हो या न रहे वहां ऐसे संपरिवर्तन के पश्चात् पैदा हुए उसके अपत्य और उस अपत्य के वंशज अपने हिन्दू सम्बन्धियों में से किसी की सम्पत्ति को विरासत में प्राप्त करने से निरहित होंगे सिवाय जब कि ऐसे अपत्य या उस अपत्य के वंशज उस समय जबकि उत्तराधिकार खुले, हिन्दू हों |
- उत्तराधिकार जबकि वारिस निरर्हित हो— यदि कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति को विरासत में पाने से इस अधिनियम के अधीन निरर्हित हो तो वह सम्पत्ति ऐसे न्यागत होगी मानो ऐसा व्यक्ति निर्वसीयती के पूर्व मर चुका हो |
- रोग, त्रुटि आदि से निरर्हता न होगी– कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति का उत्तराधिकार पाने से किसी रोग, त्रुटि या अंगविकार के आधार पर या इस नियम में यथा उपबन्धित को छोड़कर किसी भी अन्य आधार पर, चाहे वह कोई क्यों न हो, निरहित न होगा ।
राजगामित्व
- वारिसों का अभाव– यदि निर्वसीयती ऐसा कोई वारिस पीछे न छोड़े जो उसकी सम्पत्ति को इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार उत्तराधिकार में पाने के लिए अर्ह हो तो ऐसी सम्पत्ति सरकार को न्यागत होगी और सरकार को उन सब बाध्यताओं और दायित्वों के अध्यधीन लेगी जिनके अध्यधीन वारिस होता
अध्याय 3
वसीयती उत्तराधिकारी
- वसीयती उत्तराधिकारी— कोई हिन्दू विल द्वारा या अन्य वसीयती व्ययन द्वारा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (1925 का 39) या हिन्दुओं को लागू और किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अनुसार किसी ऐसी सम्पत्ति को 1[व्ययनित कर सकेगा या कर सकेगी] जिसका ऐसे व्ययनित किया जाना शक्य हो |
स्पष्टीकरण– मिताक्षरा सहदायिकी सम्पत्ति में हिन्दू पुरुष का हित या तरवाड, तावषि, इल्लम्, कुटुम्ब या कवरु की सम्पत्ति में तरवाड, तावषि, इल्लम्, कुटुम्ब या कवरु के सदस्य का हित इस अधिनियम में या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी बात के होते हुए भी इस धारा के अर्थ के अन्दर ऐसी सम्पत्ति समझी जाएगी जिसका उस द्वारा व्ययनित किया जाना शक्य हो |
अध्याय 4
निरसन
- निरसन– निरसन तथा संशोधन अधिनियम, 1960 (1960 का 58) की धारा 2 तथा अनुसूची 1 द्वारा निरसित।
अनुसूची
( धारा 8 देखिये)
वर्ग 1 और वर्ग 2 में वारिस
वर्ग-1
पुत्रे, पुत्री, विधवा, माता, पूर्वमृत पुत्र का पुत्र, पूर्वमृत पुत्र की पुत्री, पूर्वमृत पुत्री का पुत्र, पूर्वमृत पुत्री की पुत्री, पूर्वमृत पुत्र की विधवा, पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र का पुत्र, पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की पुत्री, पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की विधवा। [पूर्वमृत पुत्री की पूर्वमृत पुत्री का पुत्र, पूर्वमृत पुत्री की पूर्वमृत पुत्री की पुत्री, पूर्वमृत पुत्री के पूर्वमृत पुत्र की पुत्री, पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्री की पुत्री]
वर्ग-2
- पिता
- (1) पुत्र की पुत्री का पुत्र, (2) पुत्र की पुत्री का पुत्री, (3) भाई, (4) बहिन।
- (1) पुत्री के पुत्र का पुत्र, (2) पुत्री के पुत्र की पुत्री, (3) पुत्री की पुत्री का पुत्र, (4) पुत्री की पुत्री की पुत्री।
- (1) भाई का पुत्र, (2) बहिन का पुत्र, (3) भाई की पुत्री, (4) बहिन की पुत्री
- पिता का पिता, पिता की माता
- पिता की विधवा, भाई की विधवा
- पिता का भाई, पिता की बहिन
- माता का पिता, माता की माता
- माता का भाई, माता की बहिन ।
स्पष्टीकरण– इस अनुसूची में भाई या बहिन के प्रति निर्देशों के अन्तर्गत उस भाई या बहिन के प्रति निर्देश नहीं है जो केवल एकोदररक्त के हों
ज्यादा अच्छी जानकारी के लिए इस नंबर 9278134222 पर कॉल करके online advice ले advice fees will be applicable.
जय हिन्द
द्वारा
अधिवक्ता धीरज कुमार
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Mini
Sr… Kya baccha apne ma ka surname adopt kr sakta h… Yadi bacche ki ma or pita dono ki sahmati ho to??
Advocate_Dheeraj
Mini जी,
हां ऐसा हो सकता है | इसके लिए आप आवेदन अपने नाम से आवेदन कीजियेगा और आपका सरनेम आपके नाम के पीछे लगा होना चाहिए
Kshitiz
Sir , mere paradada ne mere dada aur unke bhai ke nam vasiyat na krte hue mere dada ke bhai ke ladko arthat mere pardada ne unke pote ke nam vasiyat likh di jisme ki pardada ke ek ki putra mtlb ki mere dada ke bhai ke ladko ke hi nam hai hai mere dada ke putra mtlb mere pitaji ke nam nhinkri …kya ye vasitat ko zero ghosgit kreaya ja skta hai …is condition me jab sampatti petrak hai. give me suggestions
Advocate_Dheeraj
Kshitiz जी,
डाक्यूमेंट्स देखकर ही बता सकता हु आप कॉल करके सलाह ले
राजेश प्रसाद राय
सर्1956 से पूर्व विधवा ने एक पुत्री के बेटे को आतयानाम लिख दी और दो जाउत की क्या कैंसिल होगा
Advocate_Dheeraj
राजेश प्रसाद राय जी,
मुझे उर्दू नही आती आप “आतयानाम और जाउत” को इंग्लिश या शुद्ध हिंदी में लिखे |
Shivani Sharma
Namaste sir mere father govt job main the unfortunately unki death ho gyi after that mere bade Bhai ko job mile jb vo 16th year k the 2014main Bhai ke death bhi accident main ho gyi family main only vo he the unki jagh main apply kiya Bt bhan Ko family main nhi mante aisa bolke mana kiya apply k tym m unmarried the abi 5march ko divorce hua hai court main case kiya hua hai Bt abi Koi decision nhi hua sir Kya court agree kr sakti hai plz ap bataye
Shivani Sharma
ND Bhai bhi unmarried he the
Advocate_Dheeraj
Shivani Sharma जी,
बस यही साबित करे की परिवार के पास कोई भी आजीविका का साधन नही है | बाकी के लोग आप पर ही निर्भर है और आप ही नौकरी कर के घर चला सकती है |
Advocate_Dheeraj
Shivani Sharma जी,
अगर आप कोर्ट में ये साबित कर दे की आपके भाई को ये नौकरी आपके पिता के आधार पर मिली थी और परिवार के भरण पोषण के लिए और अब वे नही रहे, उनकी जिम्मेदारी अधूरी रह गई और अब ये जिम्मेदारी आपके कंधो पर है तो कोर्ट आपके लिए आदेश दे देगी | वरना नही |
छोटे लाल
सर
प्रणाम
मेरे एक परिवारी चाचा थे (नत्थू सिंह)जिनके एक भतीजी के अलावा कोई नही था ,और भतीजी की मृत्यु सन, 1985 में हो गयी थी उसके बाद जमीन हड़पने के लिए भतीजी के पति ने और भतीजी के पुत्र ने मिलकर सन, 1989 में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी और ये साबित भी हो गया था और हत्या रोपियो ने जेल भी काटी थी,जिसकी अपराध संख्या 274/89कीधारा(147,148,149,307,302) है और तब पुत्री का संपत्ति में अधिकार भी नही था (यानी कि हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन 2005 में हुआ है) तो संपत्ति में हक़ किसे मिलेगा
Advocate_Dheeraj
छोटे लाल जी,
भतीजी के बच्चो को
छोटे लाल
सर
भतीजी का बड़ा पुत्र ,और भतीजी का पति भी हत्या में आरोपी है इन्होंने फ़र्ज़ी वसीयत बना कर फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी
Advocate_Dheeraj
छोटे लाल जी,
आप लोग एक सवाल को कितनी बार घुमा घुमा कर पूछेंगे |
आपके इस प्रश्न से कुछ भी स्पस्ट नही हो रहा है | (फर्जी वसीयत बना कर वसीयत कर दी तो क्या ? इसमें सवाल कहा है?)
मुझे पता है की आप क्या जानना चाहते है , साथ यहा साफ साफ लिखने में भी हिचक रहे है
अच्छा होगा आप कॉल करके सलाह ले | आपको सब कुछ स्पस्ट कर दूंगा
Anil kumar
सर प्रणाम
सर मैं ये जानना चाहता हूँ कि जैसे किसी के कोई वारिस नही है और उसके केवल भाई की पुत्री(भतीजी) ही है और भतीजी की भी मृत्यु हो चुकी है क्या संपत्ति में भतीजी और भतीजी पुत्रों का हक होता है
Advocate_Dheeraj
Anil kumar जी,
सम्पति बिना विल की है तो बिलकुल होगा
Anil kumar
सर नमस्कार
सर मेरे परिवारी चाचा के कोई वारिस नही थे जंहा तक नज़दीक हूँ वो मैं ही हूँ और सहखातेदार भी हूँ और उनकी फ़र्ज़ी वसीयत बनाकर एक ब्यक्ति ने जमीन अपने नाम करा ली वो लगभग 30 वर्ष हो गए और ज्यादा समय होने के कारण क्या मेरा हक नही बनेगा और जिसकी संपत्ति थी. ( वसीयत कर्ता ) की हत्या भी उन्ही लोगो ने की थी जिसमे वो जेल भी गए थे कोई उपाय बताए
Advocate_Dheeraj
Anil kumar जी,
अगर उन्होंने उनकी हत्या की थी और ये साबित भी हो गया है तो उनको उस जमीन में कुछ नही मिलेगा |
ये कानून है | आप किसी को मार कर उसकी जमीन में हिस्सा नही ले सकते है चाहे आप उसके वारिस ही क्यों नही हो
आप हाई कोर्ट में केस करे
अनिल यादव
सर को सादर प्रणाम
उक्त विषय मे अवगत कराना चाहता हूँ कि मेरी एक भूमि विवादित है जिसपर नायब तहसीलदार के यंहा मुक़द्दमा अभी चल रहा है और प्रतिवादी उसी भूमि को बेचना चाहते है रोकने के लिए कोई उपाय बताए क्या करें
Advocate_Dheeraj
अनिल यादव जी,
केस में स्टे भी ले ताकि वो जमीन नहीं बेच सके
आपने वकील साहब को कहे
अनिल कुमार
सर को नमस्कार
सर मेरी और मेरे ताऊ के लड़के की दो मौजे में ज़मीन थी और ताऊ के लड़के की मृत्यु हो गयी और उनके कोई वारिस भी नही था और एक मौजे की ज़मीन तो मेरे नाम हो बहुत पहले हो गयी लेकिन दूसरे मौजे की ज़मीन मैने अपने नाम विरासत कराने के लिए दायरा किया तो उसमें एक लोग बिना मतलब के आपत्ति लगा दी तो अब क्या करे कोई उपाय बताए प्लीज सर बहुत मेहरबानी होगी
Advocate_Dheeraj
अनिल कुमार जी,
आपति लगाने का अधिकार तो सभी को है | आप कोर्ट का सहारा ले | जमीन पर कोई लोन या अग्रीमेंट नही है तो वो आप को ही मिलेगी |
संदीप श्रीवास्तव
क्या कोई भी पुस्तैनी ज़मीन जो उनके नाम पर है ,उसे वसीयत कर सकता है जबकि परम्परा वध वो पुस्तैनी ही चली आ रही है
Advocate_Dheeraj
संदीप श्रीवास्तव जी,
अगर पिछले लोगो ने अपना हक़ किसी एक को सोप दिया है तो वो फिर वो उसी की जमींन हुई |
लेकिन आप अपने हक़ की मांग उनके हिस्से से कर सकते हो |
ऐसा नही भी हो तो भी लोग विल करते है | कोई ऑब्जेक्शन नही करे तो ये वैलिड है
Dinesh
Mere bahan li shadi hindu riti Riyaj se 2016 Feb me hui thi.lakin durbhawgya bas mere jija ki death October 2018 ko ho Gai. Aur ab bahan ki SaaS sasur v bhai koi bhi sampatti dene ko raaji nahi hai.mere Jija ki naam se ek truck hai Jise unhone apne paise se kharida tha us ko bhi meri bahan ki naam se nahi Jaane de rahe hai.is truck ki aalwa aur kuch bhi nahi hai .meri bahan ka aakhir kharch kase chalega.kaya truck in ki naam se ho sakta hai .please help me sir.
Advocate_Dheeraj
जो भी आपके जीजा के नाम था उस पर पहला हक आपकी बहन का है अगर सास ससुर क्लेम करे तो आधा उनको मिलेगा
लेकिन अगर बहन के बच्चे है तो सारा हक़ आपकी बहन का ही है
Yogendra
Sir mujhe shadi ka pressure banane ke lea rape ka case kia girl ne phir shadi ke baad 498a 125 dv act lagaya h 14/12/2017 ko 2200 per month maintenance ka order ho gaya me B.tech student hu girl iti pass h ab dv act me 05/01 2019 ko nibas ka order pass ho gaya
Advocate_Dheeraj
ये भी बताये मुझसे क्या जानना चाहते है |
Jagtar Singh
सर मेरे पिताजी स्वयं कमाई से एक मकान बनाया था एवं उनकी मौत 29 अगस्त 2005 को हुई डेथ के पूर्व वो वसीयत नही कर पाए जिसके कारण बाद में मेरी मम्मी बहन और मेरे नाम से 1/3 सम्पति चढ़ गयी और उसके बाद मेरी माता जी ने अपने 1/3 भाग की वसीयत मेरे नाम कर दी जो जो उनकी मौत के बाद मेरे नाम हो गयी याने 2/3 मेरी ओर 1/3 बहन की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने
2005 के अंतर्गत दिए अधिकार संसोधन अधिनियम में कहा है कि 9 सिंतबर 2005 के बाद ही लड़कियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार है इस परिस्थिति में कैसे अवैध नाम हटाऊँ कृपया मार्गदर्शन करे…..
EmIl ID-jagtarbina@gmail.com, Bina Distt. Sagar M.P.
Advocate_Dheeraj
आप आपनी बहन से रिलिंकुश डीड के द्वारा ये नाम हटवा सकते है | इसमें बहन अपना हक़ छोड़ कर दुसरे हक़दार को दे सकती है | या फिर ये सम्पति अपनी बहन से ख़रीदे
Rajkumar
Vakil Shahab Mai Aap se 498a ke baare Mai ye Jaan na chahunga ki aap jo likh rahe ho ki khetradhikar se sambandhit mai isme confused hu kyonki mujhe sabhi Vakil ye bol rahe hai ki ladki Jahan raheti hai wo wahan se case kar Sakti kya asa ho Sakta hai.
Advocate_Dheeraj
अगर ऐसा होने लगे तो लड़की कश्मीर में शादी करके लड़के पर कन्याकुमारी में 498A का केस कर दे | उसे तो सिर्फ गवाही के लिए जाना होगा | लड़के को तो हर डेट पर जाना पडेगा |
जो भी वकील साहब कह रहे है की लड़की कही से भी केस कर सकती है तो वो गलत है | आप अगर 500 फीस पे करे तो में आप को इसके लिए जजमेंट दे सकता हु |
Vinod
Sar.meri wife kisi anya ladke sath baat karti hai iska kya koi smadan ho skata kai baar baat karti huyi pkadi gaya lekin espe kesh darj ho skata hai kya
Advocate_Dheeraj
आप इस आधार पर सिर्फ तलाक ले सकते है | और उस को आप इस आधार पर खर्चा देने से भी बच सकते है |
Gangadhar lodha
Sir.kya name sarnem change karne ke liye wakil karna jruri hai
Advocate_Dheeraj
कोई जरूरी नही है | ये कोर्ट में केस लड़ने का नही ऑफिस में काम करने का काम है | आप स्वय करे | लेकिन होता ये है की आप को सब बातो का पता नही होता है इसलिए लोग सहारे व आसानी से काम के लिए वकील साहब को पकड़ते है |