अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958
The Probation of Offenders Act, 1958
1.संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
2. परिभाषाएँ
3. कतिपय अपराधियों को भत्र्सना के पश्चात् छोड़ देने की न्यायालय की शक्ति,
4. कतिपय अपराधियों को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने की न्यायालय की शक्ति
5. छोड़े गए अपराधियों से प्रतिकर और खर्च देने की अपेक्षा क़रने की न्यायालय की शक्ति
6. इक्कीस वर्ष से कम आयु वाले अपराधियों के कारावास पर निर्बन्ध
7. परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट का गोपनीय होना
8. परिवीक्षा की शर्तों में फेरफार
9. बन्धपत्र की शर्तों के अनुपालन में अपराधी के असफल होने की दशा में प्रक्रिया
10. प्रतिभुओं के बारे में उपबन्ध
11. अधिनियम के अधीन आदेश देने के लिए सक्षम न्यायालय, अपील और पुनरीक्षण और अपीलें और पुनरीक्षणों में न्यायालयों की शक्तियाँ
12. दोषसिद्धि से संलग्न निरर्हता का हटाया जाना
13. रिवीक्षा अधिकारी
14. परिवीक्षा अधिकारियों के कर्तव्य
15. परिवीक्षा अधिकारियों का लोक-सेवक होना
16. सद्भावपूर्वक की गई कार्यवाही के लिए संरक्षण
17. नियम बनाने की शक्ति
18. कतिपय अधिनियमितियों के प्रवर्तन की व्यावृत्ति
19. संहिता की धारा 562 का कतिपय क्षेत्रों में लागू होना..
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958
(1958 का अधिनियम संख्यांक 20)
अपराधियों को परिवीक्षा पर या सम्यक् भत्र्सना के पश्चात् छोड़ दिए जाने के लिए और इससे सम्बद्ध बातों के लिए उपबन्ध करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के नवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो –
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ– (1) यह अधिनियम अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 कहा जा सकता है।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) किसी राज्य में यह उस तारीख की प्रवृत्त होगा, जिसे वह राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र
द्वारा नियत करें, और राज्यों के विभिन्न भागों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।
2. परिभाषाएँ- इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो; ।
(क) “संहिता” से दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5)1 अभिप्रेत है;
(ख) परिवीक्षा अधिकारी” से वह अधिकारी अभिप्रेत है जो धारा 13 के अधीन
परिवीक्षा अधिकारी नियुक्त किया गया है या उस रूप में मान्यताप्राप्त है;
(ग) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए अधिनियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(घ) ऐसे शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं। और दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5)2 में परिभाषित हैं, वे ही अर्थ होंगे जो उस संहिता में क्रमशः उनके हैं।
3. कतिपय अपराधियों को भर्त्सना के पश्चात् छोड़ देने की न्यायालय की शक्ति- जब कोई व्यक्ति भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 379 या धारा 380 या धारा 381 या धारा 404 या धारा 420 के अधीन दंडनीय कोई अपराध तथा भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य विधि के अधीन दो वर्ष से अनधिक के लिए कारावास या जुर्माने अथवा दोनों से दंडनीय कोई अपराध का दोषी पाया जाता है और उसके विरुद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि साबित नहीं होती है और जिस न्यायालय ने उस व्यक्ति को दोषी पाया है उसकी यह राय है कि मामले की परिस्थितियों को, जिनके अन्तर्गत अपराध की प्रकृति और अपराधी का चरित्र भी है, ध्यान में रखते हुए ऐसा करना समीचीन है, जब तक तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी वह न्यायालय उसे दंडित करने या उसे धारा 4 के अधीन सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने के बजाये उसे सम्यक् भर्सना के पश्चात् छोड़ सकेगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिए किसी व्यक्ति के विरुद्ध पूर्व दोषसिद्धि के अन्तर्गत इस धारा या धारा 4 के अधीन उसके विरुद्ध किया गया कोई पूर्व आदेश भी है
टिप्पणी
अभियुक्त की मुक्ति– जहाँ अभियुक्त समाज के दरिद्र वर्ग से सम्बन्धित तथा मामला पाँच वर्षों से लम्बित तथा जानबूझकर उपहति कारित करने का मामला था, चेतावनी के पश्चात् अभियुक्त की मुक्ति को न्यायोचित निर्णीत किया गया-राज्य बनाम महबूब अली, 2003 क्रि० एल० जे० 4145 (4146, 4147) (कर्ना०) (खं० पी०) ।
4. कतिपय अपराधियों को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने की न्यायालय की शक्ति– (1) जब कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करने का दोषी पाया जाता है जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है और जिस न्यायालय ने उस व्यक्ति को दोषी पाया है उसकी यह राय है। कि मामले की परिस्थितियों को, जिनके अन्तर्गत अपराध की प्रकृति और अपराधी का चरित्र भी है, ध्यान में रखते हुए सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देना समीचीन हो तब तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी वह न्यायालय उसे तुरन्त दंडित करने के बजाय, निदेश दे सकेगा कि उसे, प्रतिभुओं के सहित या उनके बिना, उसके द्वारा ऐसा बंधपत्र देने पर छोड़ दिया जाए, कि वह तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी कालावधि के दौरान, जैसी न्यायालय निदिष्ट करे, आहूत किए जाने पर उपस्थित होगा और दंडादेश प्राप्त करेगा और इस बीच परिशान्ति कायम रखेगा और सदाचारी रहेगा :
परन्तु न्यायालय किसी अपराधी के ऐसे छोड़ दिए जाने का निदेश तब तक नहीं देगा जब तक उसका यह समाधान नहीं हो जाता कि अपराधी या उसके प्रतिभू का, यदि कोई हो, नियत निवास स्थान या उस स्थान में नियमित उपजीविका है, जिस पर वह न्यायालय अधिकारिता का प्रयोग करता है या जिसमें अपराधी के उस कालावधि के दौरान रहने की सम्भाव्यता है जिसके लिए वह बुन्धपत्र देता है।
(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करने से पूर्व न्यायालय, मामले के बारे में, संबंधित परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर, यदि कोई हो, विचार करेगा।
(3) जब उपधारा (1) के अधीन आदेश किया जाता है, तब यदि न्यायालय की यह राय है कि अपराधी और जनता के हितों में ऐसा करना समीचीन है, तो वह उसके अतिरिक्त एक पर्यवेक्षण आदेश पारित कर सकेगा जिसमें यह निदेश होगा कि अपराधी आदेश में नामित किसी परिवीक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण के अधीन एक वर्ष से कम न होने वाली ऐसी कालावधि के दौरान रहेगा जो उसमें निर्दिष्ट हो, और ऐसे पर्यवेक्षण आदेश में ऐसी शर्ते अधिरोपित कर सकेगा जैसी वह अपराधी के सम्यक् पर्यवेक्षण के लिए आवश्यक समझता है।
(4) उपधारा (३) के अधीन पर्यवेक्षण आदेश करने वाला न्यायालय अपराधी से अपेक्षा करेगा कि छोड़े जाने से पूर्व, वह ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट शर्तों का और निवासस्थान, मादक-पदार्थों से प्रवरित या किसी अन्य बात के बारे में ऐसी अतिरिक्त शर्तो का, जैसी न्यायालय विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसी अपराध की पुनरावृत्ति को या अपराधी द्वारा अन्य अपराधों के किए जाने को रोकने के लिए अधिरोपित करना ठीक समझे, पालन करने के लिए प्रतिभुओं के सहित या बिना एक बंद पत्र दे |
(5) उपधारा (3) के अधीन पर्यवेक्षण आदेश करने वाला न्यायालय आदेश के निबन्धनों और शर्तो को अपराधी को समझाएगा और प्रत्येक अपराधी, प्रतिभू, यदि कोई हो, और संबंधित परिवीक्षा अधिकारी को तुरन्त पर्यवेक्षण आदेश की एक प्रति देगा
टिप्पणी
दोषमुक्ति- हत्या के प्रयास के मामले में अभियुक्त को परिवीक्षा का लाभ देकर दोषमुक्त नहीं किया जा सकता— रमेश बनाम म० प्र० राज्य, 2006 क्रि० एल० जे० 3815 (एम० पी०)।
परिवीक्षा का लाभ- परिवीक्षा का लाभ इस कारण इनकारित नहीं किया जा सकता कि अधिनियम के अधीन न्यूनतम दण्ड अधिरोपित किया गया है। राजस्थान राजस्व अधिनियम (1950 का 2) के अधीन मामला, एक दूसरे के अनुपूरक तथा भा० दे० सं० के विशेष परिनियम के प्रावधानों के विपरीत नहीं है– बुद्ध राम बनाम राजस्थान राज्य, 1996 क्रि० एल० जे० 1243 (राज०)
जहाँ परिवीक्षा का लाभ सह– अभियुक्त को प्रदान किया गया हो, अभियुक्त भी ऐसे लाभ का हकदार होगा- सूरज मल बनाम राजस्थान राज्य, 2006 क्रि० एल० जे० 2663 (राज०)
अवमुक्ति हेतु पूर्व शर्त— परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर विचारण, अभियुक्त की अवमुक्ति की एक पूर्व शर्त है— एम० सी० डी० बनाम दिल्ली राज्य, (2005) 4 एस० सी० सी० 605 : 2005 एस० सी० सी० (क्रि०) 1322 : ए० आई० आर० 2005 एस० सी० 2658 : 2005 क्रि० एल० जे० 3077 (एस० सी०)।
न्यायालय का विवेकाधिकार– अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर अपराधी की अवमुक्ति के लिये न्यायालय का विवेकाधिकार उन परिस्थितियों जिनमें अपराध कारित किया गया, अपराधी की आयु, चरित्र तथा पूर्व आचरण के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाना चाहिए- एस० सी० डी० बनाम दिल्ली राज्य, (2005) 4 एस० सी० सी० 605 : 2005 एस० सी० सी० (क्रि०) 1322 : ए० आई० आर० 2005 एस० सी० 2658 : 2005 क्रि० एल० जे० 3077 (एस० सी०)।
विशेष क्षेत्र में अधिनियम का प्रवर्तन— किसी विशेष क्षेत्र में परिवीक्षा अधिनियम की प्रयोज्यता से उस क्षेत्र में संहिता की धारा 360, 361 के प्रावधानों की प्रयोज्यता अपवर्जित हो जाती है- छन्नी बनाम उ० प्र० राज्य, 2006 क्रि० एल० जे० 4068 (एस० सी०)।
परिवीक्षा का प्रदान किया जाना—जहाँ न्यायालय परिवीक्षा प्रदान करना चाहता है; वह अभियुक्त को बिना दण्ड दिये ऐसा कर सकता है, दण्ड अस्थगित रहेगा। अभियुक्त को दण्ड देना तथा साथ ही परिवीक्षा प्रदान करना अविधिक है– कर्नाटक राज्य बनाम एरप्पा कुरूगोडेप्पा पूजर, 2000 क्रि० एल० जे० 2163 (डी० बी०) (कर्ना०)।
दयालु विचारण– अपीलार्थी द्वारा ग्रहण किया गया अभिवाकु कि वह एक बैंक कर्मचारी है तथा उसका पुत्र विकलांग है, उसके साथ अधिनियम के अधीन संव्यवहार किया जाए क्योंकि इस प्रकार के दयालु विचारण से सेवा में बने रहने में उसकी सहायता होगी, दोषसिद्धि की अभिपुष्टि करते हुये अपीलार्थी को अधिनियम की धारा 4 के अधीन अवमुक्त किया गया–अशुतोष कुमार मनोज बनाम बिहार राज्य, 2002 (3) सुप्रीम 88 : 2002 (2) क्राइम्स 96 : 2002 (1) ईस्ट सर० सी० 182 : 2002 (1) ए० क्रि० आर० 368 : 2002 (1) बी० एल० जे० आर० 317 : 2002 (1) जे० सी० सी० 148 ।
जुर्माने का भुगतान– जहाँ अभियुक्त ने एक लड़की को पकड़कर उसके स्तन को दबाया वह परिवीक्षा का हकदार नहीं था। किन्तु क्योंकि वह नौ दिनों तक अभिरक्षा में रहा, दण्ड को पहले भुगती गयी अवधि तक कम किया गया तथा जुर्माने में 300 रु० से 2,500 रु० तक अभिवृद्धि की गयी- शांताराम नीलकण्ड मेशराम बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2002 (1) क्राइम्स 662 (665) : 2002 (1) फेमी ज्यूरिस सी० सी० 216 : 2002 (1) एम० एच० एल० जे० 260 : 2002 (3) सी० आर० जे० 327 (बॉम०) ।
अच्छे आचरण की परिवीक्षा– जहाँ अभियुक्त ने निरोध की कुछ अवधि को भुगता था, तथा विचारण,7 वर्षों तक लम्बित रहा तथा वह पूर्व दोषसिद्ध नहीं था तथा उसके विरुद्ध कोई अप्रत्याशित घटना या परिवाद दाखिल नहीं किया गया था, उसे अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर छः माह की अवधि के लिये अवमुक्त किया गया- वीरेन्द्र सिंह बनाम राज्य, 2004 क्रि० एल० जे० 2321 (2322) दिल्ली।
5. छोड़े गए अपराधियों से प्रतिकर और खर्च देने की अपेक्षा करने की न्यायालय की शक्ति— (1) धारा 3 या धारा 4 के अधीन अपराधी को छोड़ने का निदेश देने वाला न्यायालय, यदि ठीक समझता है, तो उसी समय तक अतिरिक्त आदेश कर सकेगा जिसमें उसे निम्नलिखित संदत्त करने के लिए निदिष्ट किया जाएगा—
(क) अपराध के किए जाने से किसी व्यक्ति की हुई हानि या क्षति के लिए इतना प्रतिकर जितना न्यायालय युक्तियुक्त समझता है; और
(ख) कार्यवाहियों के इतने खर्चे जितने न्यायालय युक्तियुक्त समझता है।
(2) उपधारा (1) के अधीन संदत्त किए जाने के लिए आदिष्ट रकम संहिता की धारा 386 और 387 के उपबन्धों के अनुसार जुर्माने के रूप में वसूल की जा सकेगी।
(3) उसी मामले से जिसके लिए अपराधी अभियोजित किया जाता है पैदा होने वाले वाद का विचारण करने वाला सिविल न्यायालय नुकसानी दिलाने में उस किसी रकम को गणना में लेगा जो उपधारा (1) के अधीन प्रतिकर के रूप में संदत्त या वसूल की गई हो।
6. इक्कीस वर्ष से कम आयु वाले अपराधियों के कारावास पर निर्बन्ध– (1) जब इक्कीस वर्ष से कम आयु वाला कोई व्यक्ति कारावास से (किन्तु आजीवन कारावास से नहीं) दण्डनीय कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है तब वह न्यायालय जिसने उस व्यक्ति को दोषी पाया है उसे कारावास से तब तक दंडित नहीं करेगा जब तक उसका समाधान नहीं हो जाता है कि मामले की परिस्थितियों को, जिनके अन्तर्गत अपराध की प्रकृति और आपराधी का चरित्र भी है, ध्यान में रखते हुए यह वांछनीय नहीं होगा कि उससे धारा 3 या धारा 4 के अधीन व्यवहार किया जाए, और यदि न्यायालय अपराधी को कारावास का कोई दंड देता है तो वह वैसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा।
(2) अपना यह समाधान करने के प्रयोजन के लिए कि क्या उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराधी से धारा 3 या धारा 4 के अधीन व्यवहार करना वांछनीय नहीं होगा, न्यायालय परिवीक्षा अधिकारी से रिपोर्ट माँगेगा और रिपोर्ट पर, यदि कोई हो, और अपराधी के चरित्र और शारीरिक तथा मानसिक दशा से सम्बद्ध उसे प्राप्त किसी अन्य जानकारी पर, विचार करेगा
टिप्पणी
आयु निर्धारण– धारा 6 को लागू करने के लिये अपराधी की आयु के निर्धारण हेतु सुसंगत तिथि, दोषसिद्धि की तिथि है न कि अपराध कारित करने की तिथि- मोट्टी फिलोपोस बनाम केरल राज्य, 2006 क्रि० एल० जे० 2271 (केरल)।
7. परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट का गोपनीय होना– धारा 4 की उपधारा (2) या धारा 6 की उपधारा (2) में निदिष्ट परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट गोपनीय मानी जाएगी :
परन्तु न्यायालय यदि ठीक समझता है तो उसका सार अपराधी को संसूचित कर सकेगा और उसे ऐसा साक्ष्य पेश करने का अवसर दे सकेगा जैसा रिपोर्ट में कथित विषय से सुसंगत हो।
8, परिवीक्षा की शर्तों में फेरफार— (1) यदि किसी परिवीक्षा अधिकारी के आवेदन पर किसी न्यायालय की, जिसने किसी अपराधी के संबंध में धारा 4 के अधीन कोई आदेश पारित किया है, यह राय है कि अपराधी द्वारा दिए गए किसी बन्धपत्र की शर्तों में फेरफार करना उस अपराधी और जनता के हितों में समीचीन या आवश्यक है तो वह उस कालावधि के दौरान, जब बन्धपत्र प्रभावी है, किसी समय उसकी अस्तित्वावधि को बढ़ा या घटाकर किन्तु इस प्रकार कि वह मूल आदेश की तारीख से तीन वर्ष से अधिक की न हो, अथवा उसकी शर्तों को परिवर्तित करके या उसमें अतिरिक्त शर्ते अन्त:स्थापित करके उस बन्धपत्र में फेरफार कर सकेगा :
परन्तु ऐसा कोई फेरफार अपराधी को या बन्धपत्र में वर्णित प्रतिभू या प्रतिभुओं को सुनवाई का अवसर दिए बिना नहीं किया जाएगा। |
(2) यदि कोई प्रतिभू उपधारा (1) के अधीन किया जाने के लिए प्रस्थापित किसी फेरफार के लिए सहमत होने से इंकार करता है तो न्यायालय अपराधी से नया बन्धपत्र देने की अपेक्षा कर सकेगा और अपराधी यदि वैसा करने से इंकार करेगा या उसमें असफल होगा तो न्यायालय उसे उस अपराध के लिए दण्डित कर सकेगा, जिसका वह दोषी पाया गया था।
(3) इसमें इसके पूर्व अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यदि किसी न्यायालय का, जो किसी अपराधी के संबंध में धारा 4 के अधीन कोई आदेश पारित करता है; परिवीक्षा अधिकारी द्वारा किए गए आवेदन पर समाधान हो जाता है कि अपराधी का आचरण ऐसा रहा है कि उसे और आगे पर्यवेक्षणाधीन रखना अनावश्यक हो गया है तो वह उसके द्वारा दिए गये बन्धपत्र को उन्मोचित कर सकेगा।
9. बन्धपत्र की शर्तों के अनुपालन में अपराधी के असफल होने की दशा में प्रक्रिया— (1) यदि उस न्यायालय के पास जो किसी अपराधी के संबंध में धारा 4 के अधीन कोई आदेश पारित करता है या किसी न्यायालय के पास जो उस अपराधी की बाबत उसके मूल अपराध के संबंध में कार्यवाही कर सकता ; परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर या अन्यथा यह विश्वास करने का कारण है कि अपराधी अपने द्वारा दिए गए बन्धपत्र या बन्धपत्रों की शर्तों में से किसी का अनुपालन करने में असफल हुआ है तो वह उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर सकेगा या यदि ठीक समझता है तो उसके या प्रतिकुओं के, यदि कोई हों, नाम समन निकाल सकेगा जिसमें उससे या उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि इस समय पर जो समनों में विनिर्दिष्ट हो उसके समक्ष उपस्थित हों।
(2) न्यायालय, जिसके समक्ष अपराधी इस प्रकार लाया जाता है या उपस्थित होता है, या तो उससे मामले की समाप्ति तक के लिए अभिक्षा में प्रतिप्रेषित कर सकेगा या उस तारीख को जो वह सुनवाई के लिए नियत करे, उपस्थित होने के लिए उसे प्रतिभू के सहित या बिना जमानत मंजूर कर सकेगा।
(3) यदि मामले की सुनवाई के पश्चात् न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपराधी अपने द्वारा दिए गए बन्धपत्र की शर्तों में से किसी का अनुपालन करने में असफल हुआ है तो वह तत्काल—
(क) उसे मूल अपराध के लिए दंडित कर सकेगा; या
(ख) जहाँ असफलता प्रथम बार होती है, वहाँ बन्धपत्र के प्रवृत्त रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उस पर पचास रुपये से अनधिक की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा।
(4) यदि उपधारा (3) के खंड (ख) के अधीन अधिरोपित शास्ति ऐसी कालावधि के भीतर जैसी न्यायालय नियत करे संदत्त नहीं की जाती है तो न्यायालय अपराधी को मूल अपराध के लिए दंडित कर सकेगा
टिप्पणी
अवमुक्ति का आदेश– जहाँ दोषसिद्ध को परिवीक्षा पर छोड़ने के आदेश को इस आधार पर प्रत्याहृत किया गया कि अवमुक्ति के पश्चात् दोषसिद्ध दो दाण्डिक मामलों में अन्तग्रस्त था, प्रत्याहरण का आदेश तथा अभियुक्त का दण्डादेश न्यायोचित निर्णीत किया गया– प्रताप सिंह बनाम हि० प्र० राज्य, 2003 क्रि० एल० जे० 2874 (2877) (हि० प्र०) ।
10. प्रतिभूओं के बारे में उपबन्ध— संहिता की धारा 122, 126, 126-क, 406-क, 514, 514-क, 515-ख और 515 के उपबन्ध इस अधिनियम के अधीन दिए गए बन्धपत्रों और प्रतिभुओं की दशा में यावत्शाक्य लागू होंगे। |
11. अधिनियम के अधीन आदेश देने के लिए सक्षम न्यायालय, अपील और पुनरीक्षण और अपीलें और पुनरीक्षणों में न्यायालयों की शक्तियाँ— (1) संहिता में या किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन आदेश, अपराधी का विचारण और उसे कारावास के दंडित करने के लिए सशक्त किसी न्यायालय द्वारा, और उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय द्वारा भी, जबकि मामला उसके समक्ष अपील में या पुनरीक्षण में आए, दिया जा सकेगा। |
(2) संहिता में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जहाँ धारा 3 या धारा 4 के अधीन कोई आदेश अपराधी का विचारण करने वाले किसी न्यायालय द्वारा (जो उच्च न्यायालय से भिन्न हो) दिया जाता है वहाँ अपील उस न्यायालय को की जा सकेगी जिसकी पूर्ववर्ती न्यायालय के दंडादेश से अपीलें मामूली तौर पर की जाती हैं
(3) किसी ऐसे मामले जिसमें इक्कीस वर्ष से कम आयु वाला कोई व्यक्ति कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है और वह न्यायालय जिसने उसे दोषी पाया है उसके सम्बन्ध में धारा 3 या धारा 4 के अधीन कार्यवाही करने के इंकार करता है और उसके विरुद्ध जुर्माने के सहित या बिना कारावास का दण्डादेश पारित करता है जिसकी कोई अपील नहीं हो सकती या नहीं की जाती तो इस संहिता या किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी वह न्यायालय, जिसको पूर्ववर्ती न्यायालय के दंडादेश से अपीलें मामूली तौर पर की जाती हैं; या तो स्वप्रेरणा से या सिद्धदोष व्यक्ति अथवा परिवीक्षा अधिकारी द्वारा उसको आवेदन किए जाने पर मामले का अभिलेख मँगा सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा तथा उस पर ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह ठीक समझता है ।
(4) जब किसी अपराधी के संबंध में धारा 3 या धारा 4 के अधीन कोई आदेश दिया गया है। तब अपील न्यायालय या उच्च न्यायालय अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करते हुए, ऐसे आदेश को अपास्त कर सकेगा और उसके बदले में ऐसे अपराधी की बाबत विधि के अनुसार दंडादेश पारित कर सकेगा ।
परन्तु अपील न्यायालय या उच्च न्यायालय पुनरीक्षण करते हुए उससे अधिक दंड नहीं देगा जो उस न्यायालय द्वारा दिया जा सकता था जिसके द्वारा अपराधी दोषी पाया गया था।
टिप्पणी
दोषसिद्धि का परिवर्तन— जहाँ अच्छे आचरण की परिवीक्षा के आदेश के विरुद्ध अधिनियम की धारा 11 (2) के अधीन अपील दाखिल की गयी, तथा अपील की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने निर्देशित किया कि अभियुक्त को भा० दं० सं० की धारा 326 के अधीन भी दोषसिद्ध किया जाना चाहिए था, यह अवधारित किया गया कि धारा 11 (2) के अधीन उच्च न्यायालय को अपराध की प्रकृति को परिवर्तित करने अथवा अन्य धारा के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि निर्देशित करने का अधिकार नहीं था— पृथ्वी राज बनाम रमेश कुमार, 2004 (3) जे० सी० सी० 1388 : 2004 (4) क्राइम्स 88: 2004 (क) ए० क्रि०. आर० 2722 : 2004 ( क्रि०) एल० जे० 4238 : ए० आई० आर० 2004 एस० सी० 4401 (एस० सी०) ।
12. दोषसिद्धि से संलग्न निरर्हता का हटाया जाना— किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति, जो अपराध का दोषी पाया जाता है और जिसके संबंध में धारा 3 या धारा 4 के उपबंधों के अधीन कार्यवाही की जाती है, ऐसी विधि के अधीन किसी अपराध की दोषसिद्धि से संलग्न, यदि कोई हो, निरर्हता से ग्रस्त नहीं होगा :
परन्तु इस धारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो धारा 4 के अधीन उसे छोड़ दिए जाने के बाद, तत्पश्चात् मूल अपराध के लिए दण्डित किया जाता है
13. परिवीक्षा अधिकारी– (1) इस अधिनियम के अधीन परिवीक्षा अधिकारी—
(क) वह व्यक्ति होगा जो राज्य सरकार द्वारा परिवीक्षा अधिकारी नियुक्त किया गया है या राज्य सरकार द्वारा उस रूप में मान्यताप्राप्त है; या
(ख) वह व्यक्ति होगा जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त मान्यताप्राप्त सोसाइटी द्वारा इस प्रयोजन के लिए उपलभ्य किया गया है; या
(ग) किसी साधारण मामले में कोई अन्य व्यक्ति होगा जो न्यायालय की राय में उस मामले की विशेष परिस्थितियों में परिवीक्षा अधिकारी के रूप में कार्य करने के योग्ये है ।
(2) कोई न्यायालय जो धारा 4 के अधीन आदेश पारित करता है या उस जिले जिसमें अपराधी तत्समय निवास करता है, जिला मजिस्ट्रेट किसी भी समय, पर्यवेक्षक आदेश में नामित किसी व्यक्ति के स्थान पर कोई परिवीक्षा अधिकारी नियुक्त कर सकेगा।
स्पष्टीकरण– इस धारा के प्रयोजनों के लिए प्रेसीडेन्सी नगर को जिला समझा जाएगा और मुख्य प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट को उस जिले का जिला मजिस्ट्रेट समझा जाएगा।
(3) परिवीक्षा अधिकारी इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के प्रयोग में उस जिले के जिसमें अपराधी तत्समय निवास करता है जिला मजिस्ट्रेट के नियंत्रण के अधीन होगा
14. परिवीक्षा अधिकारियों के कर्तव्य– परिवीक्षा अधिकारी ऐसी शर्तों और निर्बन्धनों के, जो विहित किए जाएँ अध्यधीन रहते हुए ।
(क) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति की परिस्थितियों या घर के माहौल की जाँच, उसके संबंध में कार्यवाही करने की सबसे उपयुक्त पद्धति अवधारित करने में न्यायालय की सहायता करने की दृष्टि से, न्यायालय के निदेशों के अनुसार करेगा और न्यायालय को रिपोर्ट देगा।
(ख) परिवीधाधीनों और अपने पर्यवेक्षण के अधीन रखे गए अन्य व्यक्तियों का पर्यवेक्षण करेगा और, जहाँ आवश्यक हो उनके लिए उपयुक्त नियोजन ढूंढने का प्रयास करेगा;
(ग) न्यायालय द्वारा आदिष्ट प्रतिकर या खर्चे के संदाय में अपराधियों को सलाह और सहायता देगा;
(घ) उन व्यक्तियों को जो धारा 4 के अधीन छोड़ दिए हैं, ऐसे मामलों में और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, सलाह और सहायता देगा, और
(ङ) ऐसे अन्य कर्तव्य करेगा जो विहित किए जाएँ।
टिप्पणी
विशेष न्यायालय की शक्तियाँ– विशेष न्यायालय एक मूल क्षेत्राधिकार के न्यायालय के रूप में ऐसे अपराधों का संज्ञान लेकर विचारण हेतु सशक्त होता है- एम० बी० रामचन्द्रन बनाम कर्नाटक राज्य, 2007 क्रि० ज० जे० 489 (कर्ना०) ।
अपराध का संज्ञान— जब एक सत्र न्यायाधीश को अधिनियम के अधीन विशेष न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है, वह सत्र न्यायाधीश के रूप में अपनी प्रास्थिति को प्रतिधारित करता है तथा विचारण का संचालन एक सत्र विचारण के रूप में किया जाना होगा तथा सत्र न्यायाधीश अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता- विद्याधरन बनाम केरल राज्य, ए० आई० आर० 2004 एस० सी० 536 (540) : 2004 (48) ए० सी० सी० 1 : 2004 (1) एस० आर० जे० 501 (एस० सी०) : 2004 (1) ए० सी० आर० 1719 : 2004 (2) जे० सी० सी० 133
नियुक्ति– वैधानिकता-विधि की सम्यक् प्रक्रिया का अनुसरण करते हुये पदोन्नति द्वारा की गयी नियुक्ति को अवैधानिक अथवा त्रुटिपूर्ण निर्णीत नहीं किया जा सकता- जोनाकुट्टी मोक्षानन्दन बनाम ए० पी० राज्य, 2006 क्रि० एल० जे० 3034 (ए० पी०) ।
15, परिवीक्षा अधिकारियों का लोक-सेवक होना– इस अधिनियम के अनुसरण में नियुक्त प्रत्येक परिवीक्षा अधिकारी और प्रत्येक अन्य अधिकारी भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएँगे
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विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति– पीड़ित की पहल पर एक वरिष्ठ अधिवक्ता की विशेष लोक अभियोजक के रूप में विचारण के संचालन हेतु नियुक्ति को बिना नियम की शक्तिमत्ता को चुनौती दिये प्रश्नगत नहीं किया जा सकता— श्रीमती सक्ती देवी बनाम टीकम सिंह, 2006 क्रि० एल० जे० 4721 (राज०)
16. सद्भावपूर्वक की गई कार्यवाही के लिए संरक्षण— कोई भी बात या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में इस अधिनियम के या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों या आदेशों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशयित हो, राज्य सरकार या किसी परिवीक्षा अधिकारी या इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किसी अन्य अधिकारी के विरुद्ध न होगी। |
17, नियम बनाने की शक्ति— (1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित विषयों में से सब या किसी के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात्—
(क) परिवीक्षा अधिकारियों की नियुक्ति, उनकी सेवा के निबन्धन और शर्ते तथा वह क्षेत्र जिसके भीतर उनको अधिकारिता का प्रयोग करना है। (ख) इस अधिनियम के अधीन परिवीक्षा अधिकारियों के कर्तव्य और उनके द्वारा रिपोर्टों का दिया जाना;
(ग) वे शर्ते जिन पर सोसाइटियों को धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए मान्यता दी जा सकेगी;
(घ) परिवीक्षा अधिकारियों को पारिश्रमिक और व्ययों का अथवा किसी सोसाइटी को जो परिवीक्षा अधिकारी उपलभ्य करती है साहायिकी का संदाय; और
(ङ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।
(3) इस धारा के अधीन बनाए गए सब नियम पूर्व प्रकाशन की शर्ते के अध्यधीन होंगे और बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखे जाएँगे
18. कतिपय अधिनियमितियों के प्रवर्तन की व्यावृत्ति- इस अधिनियम की कोई बात सुधार विद्यालय अधिनियम, 1897 (1897 का 8) की धारा 31 या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 (1947 का 2) की धारा 5 की उपधारा (2) के अथवा किशोर अपराधियों या बोट्रल स्कूलों से सम्बद्ध किसी राज्य में प्रवृत्त किसी विधि के उपबन्धों को प्रभावित नहीं करेगी ।
टिप्पणी
बाध्य पूर्व– निर्णय– जहाँ अभियुक्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 5 (2) के अधीन दोषसिद्ध किया गया था, तथा उसने अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के अधीन लाभ प्रदान किये जाने का निवेदन किया, यह अवधारित किया गया कि धारा 18 के विधिक वर्जन के परिप्रेक्ष्य में, अभियुक्त को परिवीक्षा अधिनियम के अधीन कोई लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता तथा क्योंकि बोरे गौड़ा के मामले ने परिवीक्षा अधिनियम की धारा 18 का विश्लेषण तथा उल्लेख नहीं किया था, उसे बाध्यकारी पूर्व निर्णय के रूप में नहीं माना जा सकता— एन० भार्गवन पिल्लाई बनाम केरल राज्य, 2004 (3) सुप्रीम 357 (362) : 2004 (3) एस० एल० टी० 561 : 2004 (2) सी० सी० आर० 314 : 2004 (2) क्राइम्स 415 : 2004 (49) ए० सी० सी० 610 : 2004 क्रि० एल० जे० 2494
अभिव्यक्ति “आसन्न सुरक्षा”– अभिव्यक्ति ‘आसन्न सुरक्षा” को एक उद्देश्यपूर्ण अर्थ प्रदान किया जाना चाहिए, सुरक्षा को कार्यशीलता के स्थानों, प्रतिज्ञाओं, आवास तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए अथवा यह कि एक संरक्षित के न्याय. में उपस्थित होने तक विस्तारित होना चाहिए। धमकियों के परिप्रेक्ष्य में, भूतपूर्व प्रधान मंत्री को अन्तर्गत करने वाले विचारण को तीस हजारी परिसर से अन्य स्थान अन्तरित किया गया– पुलिस आयुक्त, दिल्ली बनाम रजिस्टार, दिल्ली उच्च न्यायालय, 1997 क्रि० एल० जे० 90 (एस० सी०) ।
क्षेत्र– धारा 18 जो कि दं० प्र० सं० की धारा 438 के अधीन अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर कारित अत्याचार के अपराधों में प्रत्याशित जमानत को अप्रवर्जित करती है, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की उल्लंघनकारी नहीं है– म० प्र० राज्य बनाम आर० के० बलोथिया, 1995 क्रि० एल० जे० 2076 (एस० सी०)
19. संहिता की धारा 562 का कतिपय क्षेत्रों में लागू होना– धारा 181 के उपबन्धों के अध्यधीन, संहिता की धारा 5622 उन राज्यों या उनके भागों में जिनमें यह अधिनियम प्रवृत्त किया जाता है, लागू नहीं होगी ।
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जय हिन्द
by
Advocate Dheeraj Kumar
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rajat kumar
sir merai upar 323/41 kai 2 case thai jis mai mera dusra wala case meri pheli wali tarik ko rajinama ho gaya or mera phela wala case ka court nai mujhe section 12 probation of offender act 1958 ka laab dai diya kya mai govt job lag sakta hu kya plz tellme
Advocate_Dheeraj
rajat kumar जी,
आप GOVT जॉब कर सकते है
Deepak kumar
Sir good morning.meri ek Kheti ki land hai tehsil- Fatehpur aur district-Barabanki me .maine Dhara 24 ke Antargat tehsil me mukadama dark kiya hai mere land ki pakki paimayish ke liye lekin Kanoongo bat bar galat report laga dete hai aur kam ko delay kar rhe hai. Jo agricultural land hai go meri wife ke nam hai.aur Kanoongo be 10000 rs bhi le liye hai ki kam ko kar dunga fur abhi tak 6 Mahine ho gye lekin abhi tak Jasmin ki pakki paimayish nhi ho payi hai mujhe kya karna chahiye.mai Air Force me job karta hu.pls help me
Advocate_Dheeraj
Deepak kumar जी,
kanoongo अपनी पॉवर का गलत इस्तेमाल तो करते ही है ,
आप सीधा कलेक्टर के पास आवेदन करे वे आपकी जमीन की पैमाइस करवा सकते है |
SDM और तहसीलदार के पास आवेदन करके समय बर्बाद नही करे
Sunny
Sir mere baby kai brith ko 3 years ho gy hai.mane municipal corporation mai baby k birth certificate ki file bhut bar de chuka hu pr vo log bna nhi rhe talmtol krte hai na bna kr dey rhe hai maine sbhi document pure kr dey hai fir bhi vo log nhi sunte
Advocate_Dheeraj
अगर उपर ऑफिसर्स शिकायत से बात नही बने तो आप SDM को शिकायत दे ये उन्ही के अंडर में होता है
ऐसे नही बात बने तो पुलिस में भी शिकायत दे कर कोर्ट में सिविल और क्रिमिनल केस दायर करे
क्रिमिनल मे उन्हें सजा होगी और सिविल केस में कोर्ट बिर्थ सर्टिफिकेट बनवाने का आदेश दे देगा
Bhagwati
Sir m Bhagwati mene abhi 2019m 12th exam diye hain but mujhe apna name bhot old lgta h aur sb haste h sunkr mujhe apne sabhi documents se apna name change krvane k liye kiya krna pdega
Advocate_Dheeraj
आपके आई डी में नाम बदल सकता है
लेकिन स्टडी डाक्यूमेंट्स में नही
Rashi
Sir mere ek frend hai jisse mai kaam ke chlte baat krti thi uski wife hum dono ke upr saq krti thi aur gali galoc krti thi .ganda ganda bolti thi ayr ghr ke paas aa kr mujhe maar kr bi gaie bevjh aur .uske ghar me uske sath kisi ka accha nhi bnta to o lady report krawa di aur jhute bleam lga kr case krdi sabi femily ke upr aur .thana me nhi sulja baat to cort bej diye aur cort se aaj peper aaya hai .jisme mera name bi daal diye hai aur mujhe in sb jhmela me nhi pdna kyunki mai bi sas sasural wali hu plz sair aap baty ki mai kya kru
Advocate_Dheeraj
आप अपने केस की डिटेल दे की केस किस सेक्शन में किया है तो बता सकता हु
ज्यादा अच्छी जानकारी के लिए काल करे
SUJAL SINGH
Hello Sir How are you,
Sir mene ek dost ke sath ek kam start kiya tha kuch din pehle…jisme mene ussko 80logo ke paise lagwa diye they, takriban 10lakh , ussne mujhe ek blank cheque diya tha 6mahine pehle, magar ab woh kam khatam ho gaya hai..Or woh mere logo ka paisa nahi de raha hai, Please aap bataiye ab me kya karu
Advocate_Dheeraj
चेक को बैंक में लगाये
पैसे नही दे तो केस करे
बाकी लोगो से भी कोर्ट में केस करवाये
420, 406 IPC में भी FIR करवाए
Legal help
Sir akpe post bahot achhe hai
Advocate_Dheeraj
thank you madam
Neeraj
Sir
Mere pados ki Ek lady h kaafi galat bolti h meri mom ko mujhe Kya Karna hogs yeah roj ka kissa hogaya h
Advocate_Dheeraj
अपनी माँ से ही 100 नंबर पर काल और पुलिस में शिकायत दिलवाये
स्वय इससे दूर रहे
Vijay kumar
वकील साहब अगर कोई studante 10 दिन के लिए जेल जाता है
किसी झुठे आरोप मे फिर वह केस जीत जाता है तेो किया उसका
पुलीस वेरीफिकेसन हो सकता है
Advocate_Dheeraj
बिलकुल होगा