प्रशन :- plea bargaining क्या है? इसकी क़ानूनी प्रकिर्या क्या है? इसमें सजा कितनी कम हो सकती है?
उत्तर :-
2006 में एक अमेंडमेंट के तहत CR.P.C. में एक नया अध्याय 21A जोड़ा गया था | जिसमे धारा 265A से 265L को नये रूप में जोड़ा गया और प्ली बारगेनिंग/ plea bargaining का विवरण दिया गया | इसमें अपराधी शिकायत कर्ता से समझोता करके अपने अपराध को कोर्ट के सामने स्वीकार करता है और अपने लिए कम सजा की मांग करता है |
plea bargaining का उदेश्य :-
‘ plea bargaining ‘ एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया के तहत आरोपी अपने अपराध को मर्जी से स्वीकार करता है। दोनों पक्षों के बीच होने वाला समझौता अदालत की देखरेख में होता है। समझौते के बाद मैजिस्ट्रेट के सामने आरोपी अपने गुनाह कबूल करता है। आरोपी की सजा उस केस की न्यूनतम सजा से आधी या उससे भी कम कर दी जाती है।
इसमे गलती या आवेश में हुए अपराध के कारण अपराधी सजा से बच जाता है या सजा कम करवा कर शिकायतकर्ता से समझोता करके समाज में एक अच्छा वातावरण भी बनता है | plea bargaining की सबसे बड़ी खासियत यह है कि plea bargaining में दो से तीन तारीख में ही दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के बाद केस का निपटारा कर दिया जाता है। तथा कोर्ट और सरकार का समय व पैसा बचता है
plea bargaining के लिए आवेदन की शर्ते :-
- धारा 265 A (1) a पुलिस के द्वारा कोर्ट में फाइल चार्जशीट के अनुसार या फिर कोर्ट के द्वारा लगाये गये चार्ज के अनुसार अगर कोई धारा जिसमे सजा मिर्युदंड या आजीवन कारावास नही है तथा सजा 7 साल से कम है | वहा ये धारा लागु होगी |
- धारा 265A (1) b के अनुसार अगर केस एक complaint case है और मजिस्ट्रेट ने धारा 200 CRPC में भी संज्ञान लिया हुआ है और सजा 7 साल से ज्यादा, मिर्युदंड या आजीवन कारावास भी है, तो भी इस परिस्तिथि में plea bargaining में आवेदन सम्भव है |
- 265 A के अनुसार अगर अपराध अपने भारत देश की समाजिक और आर्धिक दशा पर प्रभाव डालता है या फिर किसी महिला या 14 वर्ष या इससे कम उम्र के बच्चे से सम्बन्धित है तो उसमे plea bargaining नही लग सकती है | तथा समाजिक व आर्धिक अपराध कौन-कौन से है इसके लिए विवरण केंद्र सरकार अपनी अधिसुचना के अनुसार जारी करेगी |
- plea bargaining में शिकायतकर्ता की मंजूरी भी आवश्यक है | बिना शिकायतकर्ता की सहमती से plea bargaining नही हो सकती है |
- plea bargaining सिर्फ एक ही केस में हो सकती है | अगर केस एक ही व्यक्ति (शिकायतकर्ता) से सम्बन्धित है तो ज्यादा में भी हो सकती है |
- धारा 265 B के अनुसार कोई भी सजायाप्ता मुजरिम जिसे पहले कभी भी कोर्ट से सजा मिली है वो plea bargaining के आवेदन का लाभ नही ले सकता है |
plea bargaining की कोर्ट proceeding क्या है :-
plea bargaining की प्रकिर्या कोर्ट के आग्रह या फिर अपराधी के आवेदन पर ही होती है | ये धारा 265B CR.P.C. के अंतर्गत होती है |
- अगर अपराधी कोर्ट के सामने धारा 265B CRPC के अंतर्गत आवेदन करता है, आवेदन में आरोपी लिखता है की उसने पहले कभी इसका लाभ नही लिया है तथा जिन अपराधो में वो आवेदन कर रहा है उनमे सजा 7 साल से कम है | वो साथ इन सब बातो के लिए अपना एफिडेविट भी लगाता है | फिर कोर्ट सबसे पहले शिकायतकर्ता, सरकारी वकील और केस के इन्वेस्टीगैटिंग ऑफिसर पुलिस को नोटिस देती है |
- अगर कोर्ट में आवेदन के समय शिकायतकर्ता भी उपस्थित है या कोर्ट के नोटिस पर वहा आता है, तो कोर्ट पहले दोनों आरोपी और शिकायतकर्ता को समझोते का समय देता है | अगर चाहे तो दोनों पक्ष इसके लिए मध्यस्था केंद्र भी जा सकते है | अगर आरोपी ने कोर्ट के बाहर ही शिकायतकर्ता से समझोता कर लिया है तो भी वह आवेदन कर सकता है |
- नोटिस की प्रकिर्या के साथ ही जज इस केस को अपने सम जज को सुनवाई और आदेश के लिए ट्रान्सफर कर देता है | ऐसा इसलिए है की कोई भी ट्रायल कोर्ट जिसमे केस चल रहा है वो plea bargaining के केस में आदेश पारित नही करेगी | क्योकि कई बार ट्रायल के दोरान कोर्ट के सामने दोनों पक्षों की सच्चाई आ जाती है
- दुसरे जज साहब के सामने आरोपी के अलावा शिकायतकर्ता, सरकारी वकील और केस के इन्वेस्टीगैटिंग ऑफिसर पुलिस भी उपस्तिथ होते है | तथा इन्वेस्टीगैटिंग ऑफिसर पुलिससे ये रिपोर्ट ली जाती है की आरोपी की ये पहली ऐसी आवेदन है तथा वह कोई सजायाप्ता मुजरिम तो नही है था उसका कोई कोई खराब रिकॉर्ड तो नही है इत्यादी |
- अगर दोनों पक्षों में समझोता पैसो को लेकर हुआ है तो आरोपी पक्ष वो पैसा शिकायतकर्ता को कोर्ट के सामने देता है तथा कोर्ट आरोपी को कम से कम सजा या सिर्फ जुर्माना लगा कर ही छोड़ देती है |
- अगर किसी वजह से plea bargaining फ़ैल हो जाती है तो वो कोर्ट वापस केस को ट्रायल कोर्ट के सामने भेज देती है | जहा पर दुबारा से उस केस का ट्रायल शुरू हो जाता है |
plea bargaining में कितनी सजा मिलती है :-
वैसे धारा 265 E के अनुसार कोर्ट आरोपी पर लगी धाराओं के अनुसार उसकी आधी या एक चोथाई सजा दे सकती है तथा फिर भी हो सके तो कोर्ट को न्यूनतम से न्यूनतम सजा आरोपी को देनी चाहिए ताकि उसे शिकायतकर्ता से समझोता करने के बाद ज्यादा सजा मिलने का बोध नही रहे | वैसे तो वैसे शायद ही कोई बिरले ही किसी को सजा मिली हो वरना मैंने तो लोगो को सिर्फ जुर्माने पर ही छूटते हुए देखा है | मेरे सामने कभी किसी को इस आवेदन में सजा नही मिली है |
plea bargaining केस की किस स्टेज पर हो सकती है :-
ट्रायल कोर्ट में पुलिस की चार्जशीट फाइल करने बाद से लेकर कोर्ट का जजमेंट आने से पहले किसी भी स्टेज पर आप इस आवेदन का लाभ ले सकते है |
plea bargaining का जीवन में एक ही बार होगा आवेदन :-
आप अपने जीवन में plea bargaining का आवेदन सिर्फ एक बार ही कर सकते है | उसके बाद आपको ये छुट जीवन में कभी भी नही मिलेगी | इसलिए अगर आपको ये अपोर्चुनिटी मिल रही है तो इसका उपयोग सोच समझ कर करे |
कोर्ट की आवेदन में इंटर फेयर :-
ट्रायल कोर्ट को अगर किसी भी प्रकार से अपराध की गम्भिरता को लेकर खतरा महसूस हो रहा है की आरोपी इसका गलत फायदा उठा रहा है तो वो इस आवेदन को मानने से मना भी कर सकती है |
किन अपराधो में होता है plea bargaining का आवेदन:-
अपराध दो प्रकार के होते है पहला compoundable offence तथा दूसरा non compoundable offence है | compoundable offence वे है जो की सीधे तौर पर शिकायतकर्ता से समझोता करके कोर्ट में खत्म किये जा सकते है इनमे कोई सजा या जुरमाना नही लगता है | non-compoundable offence वे है जो की कोर्ट में समझोते से खत्म नही हो सकते है | उन केसों में ही plea bargaining का आवेदन होता है | फर्क सिर्फ इतना है की आप compoundable offence में कितनी ही बार केस होने समझोते कर सकते हो | लेकिन plea bargaining में ये मौका जीवन में सिर्फ एक ही बार मिलता है |
plea bargaining की धाराओ 265A से 265L तक का हिंदी रूपांतरण :-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973
अध्याय 21A
अभिवाक विपणन
धारा 265 A. अध्याय का लागू होना–
यह अध्याय उस अभियुक्त के बाबत लागू होगा जिसके विरुद्ध–
(a) पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी ने धारा 173 के तहत भेजी गई रिपोर्ट में यह अभिकथन करते हुए रिपोर्ट अग्रसित की है कि ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्त द्वारा ऐसे अपराध से अन्यथा, जिसके लिये तत्समय विधि में तहत मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास या ऐसी अवधि के कारावास जो सात साल से अधिक है, कि दण्ड व्यवस्था दी है, अपराध पारित किया गया है; या
(b) ऐसे अपराध से अन्यथा (उसके लिये तत्समय प्रवृत्त विधि के तहत मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास या सात साल से आधिक की अवधि के कारावास के दण्ड को उपबंधित किया गया है, मजिस्ट्रेट ने परिवाद पर संज्ञान लिया है और धारा 200 के तहत परिवाद व साक्षियों की परीक्षा के पश्चात् धारा 204 के तहत आदेशिका जारी की है।
किन्तु यह अध्याय उन मामलों पर लागू नहीं होगा जहां ऐसा अपराध राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक दशा पर प्रभाव डालता है, या फिर अपराध किसी महिला के प्रति किया गया है, या किसी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे के प्रति किया गया हो। |
(2) उपधारा (1) के उद्देश्यों हेतु, केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा तत्समय प्रवृत्त विधि के तहत उन अपराधों को निर्धारित करेगी जो ऐसे अपराध होंगे जिनसे राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक दशा पर प्रभाव पड़ता है।
265 B. अभिवाकू विपणन के लिये आवेदन–
(1) अपराध में अभियुक्त कोई भी व्यक्ति अभिवाक् विपणन के लिए ऐसे न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकता है जिसमें उस अपराध पर वाद लम्बित हो।
(2) उपधारा (1) के अंतर्गत आवेदन में वाद का सारांश विवरण शामिल होगा जिससे संबद्ध आवेदन प्रस्तुत हुआ है। इसमें वह अपराध भी सम्मिलित होगा जिससे वाद संबंधित है। इसके साथ एक शपथ पत्र भी लगेगा जिसमें केस सम्बन्धित है। इसके साथ एक शपथपत्र भी जिसमें अभियुक्त शपथ लेगा कि ऐसे अपराध के लिये कानून के अन्तर्गत प्रदत दंड की सीमा एवं प्रकृति को समझने के बाद उसने यह स्वैच्छिक पसंद किया है कि वह वाद में अभिवाक विपणन करे और यह भी कि वह किसी न्यायालय में ऐसे केस में ऐसे ही अपराध में दोष सिद्ध नहीं हुआ है।
(3) उपधारा (1) के अंतर्गत आवेदन प्राप्त करने के बाद न्यायालय सार्वजनिक अभियोक्ता या वाद केशिकायतकर्ता, जैसा भी मामला हो, को तथा अभियुक्त को केस के लिये निश्चित तिथि पर उपस्थित होने का नोटिस करेगा।
(4) जब सार्वजनिक अभियोक्ता अथवा केस का शिकायतकर्ता, जैसा भी मामला हो, तथा उपधारा (3) के अंतर्गत निश्चित तारीख पर अभियुक्त उपस्थित होता है, तो न्यायालय कैमरा के अंतर्गत अभियुक्त की परीक्षा करेगा, झा वाद में दूसरा पक्ष उपस्थित नहीं होगा, एवं इस बात की संतुष्टि करेगा कि अभियुक्त ने आवेदन स्वैच्छिक प्रस्तुत किया है, और जहां–
(a) न्यायालय इससे संतुष्ट है कि अभियुक्त ने आवेदन स्वैछिक प्रस्तुत किया है तो वह सार्वजनिक अभियोक्ता या वाद के शिकायतकर्ता, जैसी भी मामला हो को एवं अभियुक्त को ऐसा समय प्रदान करेगी ताकि वे आपसी सहमति से वाद के निष्पादन के लिये संतुष्ट हो जायें, जिसमें यह भी सम्मिलित हो सकता है कि अभियुक्त द्वारा पीड़ित को क्षतिपूर्ति व अन्य खर्चे दिये जायें जो वाद के दौरान हुए तथा उसके बाद वाद की आगे की सुनवाई के लिए तारीख निश्चित करेगा।
(b) न्यायालय को यह पता चलता है कि अभियुक्त ने अनिच्छा से आवेदन प्रस्तुत किया है अथवा वह अभियुक्त ऐसे ही अपराध में किसी न्यायालय द्वारा पहले भी दोषसिद्ध हुआ है, तो आगे की कार्यवाही इस सहिता के प्रावधानों के अनुसार चलेगी, जिस स्तर से उपधारा (1) के अन्तर्गत ऐसा आवेदन प्रस्तुत कियागया है|
265 C, पारस्परिक संतुष्टिजनक निष्पादन के लिये दिशा निर्देश-
धारा 265B की उपधारा (4) के खण्ड (क) के अंतर्गत पारस्परिक संतुष्टिजनक निष्पादन का कार्य करने में न्यायालय निम्न प्रक्रिया का अनुपालन करेगा |
(a) पुलिस रिपोर्ट पर स्थापित हुए केस में न्यायालय सार्वजनिक अभियोक्ता, केस का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी, अभियुक्त और केस के पीड़ित व्यक्ति को एक मीटिंग में भाग लेने हेतु नोटिस जारी करेगा ताकि केस का संतुष्टिजनक निष्पादन हो सके। | परन्तु वाद का ऐसा संतुष्टिजनक निष्पादन कार्यान्वित करने की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान न्यायालय का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि यह सम्पूर्ण प्रक्रिया मीटिंग में भाग लेने वाले पक्षों द्वारा स्वैच्छिक रूप से परिपूर्ण हुई है,
परन्तु यह भी कि अभियुक्त, यदि ऐसा चाहे, अपने अधिवक्ता सहित इस मीटिंग में भाग ले सकता है जो कि यदि इस वाद में नियुक्त किया गया हो।
(b) पुलिस रिपोर्ट के अतिरिक्त अन्यथा संस्थापित वाद में न्यायालय वाद के अभियुक्त एवं पीड़ित व्यक्ति को वाद के संतुष्टिजनक निष्पादन के लिये मीटिंग में भाग लेने के लिये नोटिस जारी करेगा।
परन्तु यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य होगा कि वाद के संतुष्टिजनक निष्पादन को कार्यान्वित करने वाली समूची प्रक्रिया, मीटिंग में भाग लेने वाले पक्षों की स्वेच्छा से पूर्ण हुई। ।
परन्तु यह भी कि यदि वाद का पीड़ित व्यक्ति या अभियुक्त जो भी मामला हो, यदि वह चाहे जो ऐसी मीटिंग में अपने अधिवक्ता सहित भाग ले सकता है। |
265 D. पारस्परिक संतुष्टिजनक निष्पदान की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश की जायेगी–
जहां धारा 265C के अंतर्गत मीटिंग में वाद का संतुष्टिजनक निपटारा हो गया है, तो न्यायालय ऐसे निपटारे की रिपोर्ट तैयार करेगा जिस पर न्यायालय का पीठासीन अधिकारी तथा मीटिंग में भाग लेने वाले अन्य सभी व्यक्ति हस्ताक्षर करेंगे। और यदि ऐसा निपटारा कार्यान्वित नहीं हो पाया है तो न्यायालय ऐसे प्रेक्षण का रिकार्ड करेगा तथा आगे की कार्यवाही इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार उस स्तर से चलेगी जहां से केस में धारा 265 की उपधारा (1) के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया गया है।
265 E. केस का निपटारा–
जहां धारा 265D के अंतर्गत केस का संतुष्टिजनक निष्पादन कार्यान्वित हो गया है तो न्यायालय निम्न प्रकार मामले का निपटारा करेगा, अर्थात्:–
(a) न्यायालय पीड़ित व्यक्ति के लिये मुआवजा अधिनिर्णीत करेगा, जो धारा 265D के अंतर्गत निष्पादन के अनुसार होगा, सजा मी मात्रा पर, उत्तम आचरण की समयावधि पर अभियुक्त को छोड़ने, या धारा 360 के अंतर्गत भर्त्सना के बाद या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अंतर्गत अभियुक्त से बर्ताव करने हेतु या उस समय प्रभावी किसी कानून के अंतर्गत, पक्षों की सुनवाई करेगा, तथा अभियुक्त पर सजा आरोपित करने के लिये उत्तरवर्ती उपवाक्यों में विनिदिष्ट प्रक्रिया का अनुपालन करेगा।
(b) खण्ड (a) के अन्तर्गत पक्षों की सुनवाई के बाद, यदि न्यायालय को ऐसा दिखाई दे कि धारा 360 अथवा अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के प्रावधान या उस समय प्रभावी कोई अन्य कानून अभियुक्त के केस में आकर्षित होते हैं तो वह अभियुक्त को परिवीक्षा पर छोड़ सकता है या ऐसे ही किसी अन्य कानून जैसा भी मामला हो, का लाभ उसे दे सकता है।
(c) खण्ड (b) के अंतर्गत पक्षों की सुनवाई के बाद, यदि न्यायालय को पता चलता है कि अभियुक्त द्वारा किये गए अपराध के लिये कानून में निम्नतम दंड का प्रावधान है, तो वह अभियुक्त को ऐसी निम्नतम सजा की आधी सजा दे सकता है।
(d) खण्ड (b) के अंतर्गत पक्षों की सुनवाई के बाद, यदि न्यायालय को पता चलता है कि अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध खण्ड (b) या खण्ड (c) के अंतर्गत आवृत्त नहीं हुआ है, तब न्यायालय अभियुक्त को अपराध के लिये अपबंधित किये गये दण्ड या विस्तारणीय दण्ड के एक चौथाई अंश, जैसा भी मामला हो की सजा दे सकता है।
265 F. न्यायालय का निर्णय–
न्यायालय अपना निर्णय धारा 265E के पदों पर खुले न्यायालय में देगा और इस पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर कराये जायेंगे।
265 G. निर्णय का अंतिम होना–
न्यायालय द्वारा धारा 265G के अंतर्गत दिया गया निर्णय अंतिम होगा और किसी भी न्यायालय में इस निर्णय के विरुद्ध अपील (अनुच्छेद 136 के अंतर्गत अपील करने की विशेष याचिका एवं संविधान के अनुच्छेद 226 तथा 227 के अंतर्गत समादेश याचिका दायर करने के सिवाय) नहीं की जा सकेगी।
265 H. अभिवाक विपणन में न्यायालय की शक्ति–
इस अध्याय के अतंर्गत अपने कार्यों के निष्पादन के लिये न्यायालय को इस संहिता के अंतर्गत जमानत अपराधों के विचारण व अन्य बातें जो वाद के निपटारे के लिये संबधित है, सभी शक्तियां उपलब्ध होंगी।
265 I. अभियुक्त द्वारा भेजी गई हिरासत की अवधि का कारावास की सजा में से मुजरा करना–
इस अध्याय के अंतर्गत अभियुक्त को दिये गये कारावास में से हिरासत की अवधि को मुजरा करने के लिये धारा 498 के प्रावधान लागू होंगे और ये उस विधि से लागू होंगे जो इस संहिता के अन्य प्रावधानों के अंतर्गत कारावास के संबंध में लागू होते हैं।
365 J, व्यावृत्तियां–
इस अध्याय के प्रावधान इस संहिता में मौजूद किन्हीं अन्य प्रावधानों से किसी बात पर असंगत होते हुए भी प्रभावी होंगे और अन्य ऐसे प्रावधानों में मौजूद किसी भी प्रतिभिन्नता का अर्थ यह नहीं निकाला जायेगा कि इस अध्याय के किसी भी प्रावधान का अर्थ अवरुद्ध किया गया है।
स्पष्टीकरण-इस अध्याय के प्रयोजन के लिये अभिव्यक्ति ‘‘लाक अभियोजक” का अर्थ वही होगा जो इसे धारा 2 के खण्ड (u) में नियुक्त है तथा इसमें धारा 25 के तहत नियुक्त सहायक सार्वजनिक अभियोक्ता भी सम्मिलित है।
265 K, अभियुक्त का बयान प्रयोग में नहीं लाया जायेगा–
तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि में किसी अन्य बात के होते हुए भी धारा 265B के अंतर्गत अभियुक्त द्वारा अभिवाकू विपणन के लिये प्रस्तुत आवेदन में कहे। गये तथ्यों के विवरण को इस अध्याय के प्रयोजन के अतिरिक्त किसी प्रयोग में नहीं लाया जायेगा।
265 L. अध्याय का लागू न होना–
इस अध्याय में से कुछ भी किसी किशोर या बच्चे पर लागू नहीं होगा जो किशोर न्याय (बच्चों के देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 2 के उपखण्ड (k) में परिभाषित है।
जय हिन्द
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.
द्वारा
अधिवक्ता धीरज कुमार
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Priyanshu
Sir hmare area me 2murder huye h police ki maujudgi me khuleaam jisme 12log pakad chuke jail bhej diye gye h 3agyat h
But police agyat logo ko vedeo or photography K jriye tlash kr rhi h
Lekin murder place pr mere chacha bhi maujud nihatte the Lekin kisi ki keechi gyi photo se ek picture me unki photo aa gyi h
Jisse police gr sake preshan krti h isse kaise bache sir
Advocate_Dheeraj
Priyanshu जी,
उपर ऑफिसर से मिले और परेशानी बताये |
Anam
Case hone pr bd me change kr skte hai nmbr..
Advocate_Dheeraj
Anam जी,
हा वो कोई बड़ी बात नही है | मकान का नंबर बदलना कोई बड़ी बात नही है मकान के पेपर होने चाहिए
Anam
Sir mere makan pr step mama ne kabza kr liya h ..mera makan todkr apna makan bna rhe agr mai purane makan number se case kru qki mere pass purane makan k assessment or mjhe bd me pta chle ki wo makan ka nmbr change h gya hai..to kya krna chaiye…plz rply sir
Advocate_Dheeraj
Anam जी,
आप केस करे स्टे मिल जाएगा | बाकी कोर्ट में गवाहों के साथ बाकी सबूत भी दे
Vishal Sharma
Sir ji, Mere Bai ka accident ho gya tha.uski Neurosergry hoi.Bike ka accident Bike se hua tha.Par Bike chlane vale ki bike apni nhi thi.uske Owner ki the.Jo Byke Mera Bai chla rha tha uski Insurance Khatm ho gyi hai.kya me claim kar sakta ho dosri party par.
Advocate_Dheeraj
Vishal Sharma जी,
आप क्लेम कर सकते है
Mahendra
Sir ji Maine rojgaar karyalay ke dwara bank me 2015 me lga tha mere pass jo call later aaya usme likha tha ki 8th paass to but 10th pass nahi ki ho so Maine ye baat mokhik Roop se exam center par pta Kiya to unhone bola ki aap to 8th class ki hi certificate lagao Maine laga Diya ab usme mere ganv ka hi ek ladka or thaa jisko interview me fail Kar Diya ab usne high court me writ laga rakhi hai pls sir help me ab mujhe uchit margdrasan de mujhe Kya karna chahiye or isska mujh par kyaa asar hoga plss sir
Advocate_Dheeraj
Mahendra जी,
आपकी नौकरी नहीं जाएगी, जब हाई कोर्ट आपसे पूछे तो आप जवाब दे देना की मैंने तो डिपार्टमेंट को बताया था लेकिन उन्होंने मेरे 10 के सर्टिफिकेट लिए ही नहीं | मेरा कोई कसूर नही